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High court ka Faisla : पत्नी के नाम खरीदी प्रॉपर्टी पर परिवार का भी हक़, आप भी जान लें कानून

Court Decision : आये दिन अरबों की प्रॉपर्टी का लेन देन होता है और बहुत सारे लोग प्रॉपर्टी को अपनी पत्नी के नाम पर खरीदते हैं।  हाल ही में कोर्ट के पास ऐसा ही एक केस आया और उस केस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बताया है की पत्नी के नाम खरीदी प्रॉपर्टी पर परिवार का हक़ भी होता है।  अगर आप भी कोई सम्पत्ति पत्नी के नाम करवा रहे हैं तो उससे पहले जान लें क्या है ये नियम 

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आप भी जान लें कानून

News Hindi TV, Delhi : इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने पारिवारिक संपत्ति विवाद में एक अहम फैसला सुनाया है और कहा है कि अगर किसी शख्स ने अपनी पत्नी के नाम पर कोई संपत्ति खरीदी है और रजिस्ट्री करवाई है, तो उसमें उसके परिजनों का भी हिस्सा होगा। हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि  परिजनों का उस संपत्ति पर तभी अधिकार नहीं माना जाएगा, जब यह साबित होगा कि महिला ने अपनी कमाई से वह संपत्ति खरीदी है लेकिन अगर महिला गृहिणी है और उसके नाम पर कोई संपत्ति खरीदी (property rights news) गई है तो उस पर परिवार के बाकी सदस्यों का भी अधिकार होगा।


एक मृत पिता की संपत्ति में अधिकार की मांग करने वाले एक बेटे की याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति को पारिवारिक संपत्ति माना जाएगा क्योंकि सामान्यत: एक हिंदू पति परिवार के लाभ के लिए अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है।

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कोर्ट ने कहा, "जब तक यह साबित न हो जाए कि संपत्ति पत्नी द्वारा अर्जित आय की रकम से खरीदी गई थी, इसे पति द्वारा अपनी आय से खरीदी गई संपत्ति माना जाएगा और इस पर परिवार का भी अधिकार होगा।"

 याचिका के अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने एक सिविल मुकदमा दायर कर अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति में एक चौथाई हिस्से की मांग की थी और कोर्ट से उस संपत्ति में सह-हिस्सेदार घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति उनके मृत पिता द्वारा खरीदी गई थी, इसलिए अपनी मां के साथ वह भी उस संपत्ति में   सह-हिस्सेदार हैं। सौरभ गुप्ता की मां इस मुकदमे में प्रतिवादी थी।  


याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि चूंकि संपत्ति उसकी मां यानी मृत पिता की पत्नी के नाम पर खरीदी गई है, इसलिए उस संपत्ति को तीसरे पक्ष को हस्तांतरित किया जा सकता है, इसलिए कोर्ट से तीसरे पक्ष को संपत्ति हस्तांतरित ना करने के लिए निषेधाज्ञा की भी मांग की।

मामले में प्रतिवादी और याचिकाकर्ता की मां ने एक लिखित बयान में कोर्ट को बताया कि संपत्ति उनके पति ने उन्हें उपहार में दी थी क्योंकि उनके पास आय का कोई अलग स्रोत नहीं था। बता दें कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम निषेधाज्ञा के आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ बेटे ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 15 फरवरी के अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी संपत्ति प्रथम दृष्टया संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बन जाती है, जिस पर परिवार के हरेक सदस्य का अधिकार होता है।

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