Supreme Court ने बताया, बिना किसी से पूछे घर का ये सदस्य बेच सकता है सारी संपत्ति

Supreme Court Decision : आज हम आपको अपनी इस खबर के माध्यम से यह बताने बताने जा रहे हैं। परिवार का कौन - सा सदस्य बिना किसी से पूछे सारी प्रोपर्टी को बेच सकता हैं। दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसी को लेकर अपने एक फैसले में बताया हैं कि घर का कौन - सा सदस्य बिना किसी से पूछे सारी प्रोपर्टी को बेच सकता हैं। जानिए विस्तार से-
 

NEWS HINDI TV, DELHI: सर्वाेच्च अदालत (Supreme Court) ने हाल ही में गैर-विभाजित हिंदू परिवार या जॉइंट फैमिली की प्रॉपर्टी को लेकर एक बड़ा और अहम फैसला दिया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि अगर उस परिवार का ‘कर्ता’ चाहे तो वो जॉइंट प्रॉपर्टी (joint property)  को कभी भी बेच या गिरवी रख सकता है। इसके लिए उसे परिवार के किसी भी सदस्य से परमिशन लेने की भी आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर हिस्सेदार कोई नाबालिग है तब भी कर्ता बिना अनुमति लिए प्रॉपर्टी के संबंध में फैसला (Decision regarding property) ले सकता है। 


अब आपके मन में जरूर सवाल आ रहा होगा कि ये कर्ता कौन होता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हिंदू अन-डिवाइडेड फैमिली के मामले में इतने अधिकार दे दिए। गैर-विभाजित हिंदू परिवार में ये अधिकार जन्म से प्राप्त होता है।परिवार के सबसे वरिष्ठ पुरुष को कर्ता माना जाता है। अगर सबसे वरिष्ठ पुरुष की मौत हो जाती है तो उसके बाद जो सबसे सीनियर होता है, वो अपने आप कर्ता बन जाता है। हालांकि कुछ मामलों में इसे विल (वसीयत) द्वारा घोषित किया जाता है।

मौजूदा कर्ता के हैं खास अधिकार:

जैसा कि हमने बताया कि कुछ मामलों में ये जन्म सिद्ध अधिकार नहीं रह जाता है। ऐसा तब होता है जब मौजूदा कर्ता अपने बाद किसी और को खुद से ही कर्ता के लिए चुन लेता है। ऐसा वह अपनी वसीयत में कर सकता है।इसके अलावा अगर परिवार चाहे तो वह सर्वसम्मति से भी किसी एक को कर्ता घोषित कर सकता है। कई बार कोर्ट भी किसी हिंदू कानून के मुताबिक कर्ता नियुक्त करता है।  हालांकि, ऐसे बहुत कम मामलों में होता है। 


क्या था पूरा मामला:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सामने जो मामला आया था उस पर 31 जुलाई 2023 को मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) पहले ही फैसला दे चुका था। यह मामला 1996 का था।  याचिकाकर्ता का दावा था कि उनके पिता द्वारा एक प्रॉपर्टी को गिरवी रखा गया था जो कि जॉइंट फैमिली की संपत्ति (Joint family property) थी। हालांकि, याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि उनके पिता ही परिवार के कर्ता थे। इस पर मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने भी यह फैसला दिया था कि कर्ता प्रॉपर्टी को लेकर फैसले ले सकता है और इसके लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने से मना कर दिया और इसी फैसले पर मुहर लगाई।

कब हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि ऐसे कर्ता द्वारा किसी प्रॉपर्टी गिरवी रखे जाने के मामले में कोपर्सिनर (समान उत्तराधिकारी/हमवारिस) तभी दावा कर सकता है जब कुछ गैर-कानूनी हो। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता। बता दें कि परिवार के 2 हिस्से होते हैं। पहला सदस्य, इसमें परिवार का हर व्यक्ति शामिल होता है बाप, बेटा, बहन, मां आदि। वहीं, कोपर्सिनर में केवल पुरुष सदस्यों को ही गिना जाता है। इसमें जैसा परदादा, दादा, पिता और बेटा।  

पैतृक संपत्ति में कैसे लें अपना हिस्सा:

सबसे पहले जान लें कि जो संपत्ति पिछली 4 पीढियों से चली आ रही है उसे पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) माना जाता है। दूसरी बात यदि दादा, पिता एवं भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार (Sharer in Ancestral Property) हैं तो आपको भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा अवश्य मिलना चाहिए। 


पैतृक संपत्ति (ancestral property) में हिस्से का अधिकार जन्म के साथ ही मिलता है। यदि पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है या फिर उस प्रोपर्टी को को बेचा जाता है तो बेटा बेटी को उसमें बराबर अधिकार मिलता है।  हिंदू कानून के अनुसार संपत्तियां 2 तरह की होती हैं-पहली पैतृक संपत्ति और दूसरी खुद कमाई (Aelf Acquired Property) हुई। पैतृक संपत्ति (ancestral property) वह संपत्ति है, जो आपके लिए पूर्वज छोड़कर जाते हैं। 

प्रोपर्टी में हिस्सेदारी के लिए करना होगा ये काम:

यदि दादा, पिता और भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सा (Property Share) देने से इन्कार कर दें तो आप अपने अधिकार के लिए कानूनी नोटिस (legal notice) भेज सकते हैं। आप प्रोपर्टी पर अपना दावा पेश करते हुए सिविल कोर्ट (Civil Court Case) में मुकदमा दायर कर सकते हैं। मामले के विचाराधीन होने के दौरान प्रापर्टी को बेचा न जाए ये सुनिश्चित करने के लिए आप उस मामले में कोर्ट से रोक लगाने की मांग करनी होगी। मामले में अगर आपकी सहमति के बिना ही संपत्ति बेच दी गई है तो आपको उस खरीदार को केस में पार्टी के तौर पर जोड़कर अपने हिस्से का दावा ठोकना पड़ेगा।