Income Tax विभाग कैसे पकड़ लेता है टैक्सपेयर्स की गड़बड़ी, इन 11 तरीकों से आपके बटुए पर रखता है नजर, फिर करता है कारवाई
Income Tax Notice : जब टैक्स भरने का समय आता है तो नौकरीपेशा करने वाले आयकर विभाग को कमाई की पूरी जानकारी नहीं देते हैं। लेकिन आयाकर विभाग की हर किसी की कमाई पर पूरी नजरें रहती है। ऐसी गलती करने पर भारी जुर्माना भरना पड़ता है। आइए नीचे खबर में विस्तार से जानते हैं कैसे इनकम टैक्स विभाग चोरी को पकड़ लेता है।
NEWS HINDI TV, DELHI : इनकम टैक्स डिपार्टमेंट टैक्स की चोरी पकड़ने के लिए एक मूल सिद्धांत पर काम करता है, जिसमें कहा जाता है कि कोई व्यक्ति अपनी कमाई तो छिपा सकता है, लेकिन अपने खर्च या निवेश नहीं छिपा सकता।
इसे ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ सालों में आयकर विभाग ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई है, जिससे टैक्सपेयर्स के खर्च और निवेश पर नजर रखा जाता है. इस व्यवस्था का नाम है Statement of Financial Transaction यानी SFT. इसके तहत, विभिन्न तरह के लेनदेन के लिए अलग-अलग सीमा तय की गई है. इस सीमा से ज्यादा का लेनदेन होने पर संबंधित इकाई इसकी जानकारी आयकर विभाग को देती है।
पैन, मोबाइल नंबर और आधार
पैन, मोबाइल नंबर और आधार से भी वित्तीय लेनदेन की जानकारी आयकर विभाग तक पहुंचती है, क्योंकि करीब-करीब हर बड़े लेनदेन में इनका इस्तेमाल होता है. उदाहरण के लिए, टू-व्हीलर छोड़कर कोई और गाड़ी खरीदने या बेचने पर पैन लगता है. इसी तरह, बैंक अकाउंट या डीमैट खाता खोलने, क्रेडिट कार्ड अप्लाई करने के लिए पैन की जरूरत है. अगर आपका बैंक जमा, इंश्योरेंस प्रीमियम, म्यूचुअल फंड या बॉन्ड खरीद, रेस्टोरेंट, होटल या फॉरेन ट्रिप का बिल 50 हजार रुपए से ज्यादा है तो भी पैन देना होता है. प्रॉपर्टी से किराया मिलने पर किराएदार को पैन देना होता है।
टीडीएस सबसे बड़ा हथियार
करदाताओं की आमदनी पर नजर रखने का TDS भी एक तरीका है. बैंक या पोस्ट ऑफिस में जमा रकम पर एक साल में 40 हजार रुपये से ज्यादा ब्याज मिलने पर TDS कटता है. इसी प्रकार, प्रॉपर्टी खरीदने समेत अन्य मामलों में भी TDS डिडक्ट होता है. इससे भी आयकर विभाग को आपकी कमाई के बारे में पता चल जाता है।
इन मामलों की ऐसे मिलती है जानकारी...
अगर आप किसी एक वित्त वर्ष में 10 लाख रुपए या उससे ज्यादा कैश बचत खाते में जमा करते हैं या निकालते हैं, तब बैंक इसकी जानकारी आयकर विभाग को देता है. ये लेनदेन चाहे एक खाते से हो या उससे ज्यादा खाते से. इसके अलावा, कैश देकर 10 लाख रुपये या उससे ज्यादा का डिमांड ड्रॉफ्ट (DD), पे ऑर्डर या बैंकर चेक बनाने की जानकारी भी दी जाती है।
करंट अकाउंट यानी चालू खाते में 50 लाख रुपये या इससे ज्यादा कैश जमा करने या निकालने पर आयकर विभाग को जानकारी दी जाती है.
एक वित्त वर्ष में 10 लाख या उससे ज्यादा की FD की जानकारी भी टैक्स डिपार्टमेंट को दी जाती है. कैश और डिजिटल दोनों मामलों में यह लागू होता है।
एक लाख रुपये या उससे ज्यादा का क्रेडिट कार्ड बिल कैश में या फिर 10 लाख रुपये या उससे ऊपर का बिल किसी भी तरीके से भरने पर इसकी जानकारी आयकर विभाग को दी जाती है.
अगर आप 30 लाख रुपये या उससे ज्यादा की प्रॉपर्टी खरीदते या बेचते हैं तो इसकी जानकारी देना प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार का काम है. 50 लाख रुपये से ज्यादा की प्रॉपर्टी खरीदने पर 1 फीसदी TDS (स्त्रोत पर कटौती) काटा जाता है. TDS कटौती की वजह से भी लेनदेन की जानकारी विभाग के पास पहुंच जाती है।
अगर कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष में 10 लाख रुपये या उससे ज्यादा के शेयर, डिबेंचर, बॉन्ड या म्यूचुअल फंड खरीदता है तो इसकी जानकारी आयकर विभाग को देना उस कंपनी या संस्थान की जिम्मेदारी है।
किसी वस्तु या सेवा की खरीद के लिए 2 लाख रुपये से ज्यादा का नगद भुगतान करने पर संबंधित विक्रेता को इसकी जानकारी इनकम टैक्स विभाग को देनी होती है. उदाहरण के लिए आप ज्वैलरी खरीदते हैं और 2 लाख रुपये से ज्यादा की रकम कैश में देते हैं तो यह दुकानदार की जिम्मेदारी है कि वो इसकी जानकारी विभाग को दे. इसके अलावा, 2 लाख रुपये से ऊपर के सभी लेनदेन के लिए आपको पैन कार्ड भी देना होता है।
रिटर्न भरने से पहले जरूर करें ये काम
मतलब आप चाहें या न चाहें आपके हर बड़े लेनदेन की खबर आयकर विभाग को है, लेकिन तब तक घबराने की जरूरत नहीं है, जब तक आप अपने खर्च और निवेश को कमाई से जस्टीफाई कर सकते हैं. कमाई और खर्च में अंतर होने पर आयकर विभाग नोटिस थमा सकता है. वित्त वर्ष में किए गए सभी खर्च-निवेश का ब्योरा आपको अपने एनुअल इंफोर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) में मिल जाएगा, जिसे इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं. आयकर रिटर्न भरने से पहले AIS जरूर चेक करें ताकि आमदनी और खर्च या निवेश में कोई अंतर न हो।