UP News : यूपी के 4 बैंकों पर कार्रवाई से ग्राहकों के डूबे करोड़ों रुपये, सिर्फ इतना पैसा मिला वापस
UP News : यूपी के चार कोऑपरेटिव बैंकों पर कड़ी कार्रवाई करने पर ग्राहकों के करीब 41 करोड़ रुपये डूबे हैं। लेकिन राहत की बात ये है कि इन बैंकों के खाताधारकों का बीमाकवर था, जिस वजह से 90 फीसदी ग्राहकों की रकम करीब करीब वापस मिल गई।
NEWS HINDI TV, DELHI : प्रदेश के चार कोऑपरेटिव बैंकों में जनता के करीब 41 करोड़ रुपये डूबे हैं। आरबीआई के अधीन डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन के मुताबिक लखनऊ के पायनियर अर्बन, कानपुर के यूनाइटेड कॉमर्शियल कोऑपरेटिव बैंक, मेरठ के मर्केंटाइल यूएसबीएल और महामेधा यूसीबीएल में लगभग 1.10 लाख बैंक खाते थे।
इसमें 60 करोड़ के क्लेम ग्राहकों को दिए गए। इसके बाद भी 41 करोड़ रुपये की उधारी बाकी है। राहत की बात ये है कि इन बैंकों के खाताधारकों का बीमाकवर था, जिस वजह से 90 फीसदी ग्राहकों की रकम करीब करीब वापस मिल गई।
बीमा कवर के कारण खाताधारकों की सुरक्षित रकम को देखते हुए अधिक से अधिक बैंकों का बीमा कवर बढ़ाया गया है। इस समय देशभर में 2026 बैंक बीमा कवर के दायरे में हैं। इसमें से 111 कोआपरेटिव बैंक उत्तर प्रदेश के हैं।
सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के 508 कोपआपरेटिव बैंक बीमा कवर के दायरे में हैं। 2022-23 में वित्त वर्ष में देशभर में डूबे कोआपरेटिव बैंकों के क्लेम सेटलमेंट में तेजी आई। इसमें से यूपी के चार कोआपरेटिव बैंक थे, जिनके खाताधारकों को करीब 64 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसके बाद भी लगभग 41 करोड़ रुपये डूब गए।
कोआपरेटिव बैंकों में घोटाले रोकने के लिए कसा शिकंजा :
कोआपरेटिव बैंकों में लगातार हो रहे घोटालों को रोकने के लिए वर्ष 2020 में सख्त फैसले लिए गए। इसके तहत बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में बदलाव कर कोआपरेटिव बैंकों को निगरानी में लाया गया।
अब इन बैंकों की आर्थिक सेहत खराब होने पर आरबीआई का नियंत्रण होगा। बैंक के सीईओ की नियुक्ति से पहले आरबीआई की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। कोआपरेटिव बैंकों का आडिट भी आरबीआई की गाइडलाइंस के मुताबिक होगा।
इस तरह डूबे ये चार कोआपरेटिव बैंक :
महामेधा यूसीबीएल का लाइसेंस वर्ष 2017 में निरस्त हो गया था। ग्राहकों के रुपये बैंक में जमा करने के बाद दूसरे बिजनेस में लगाने और लोन में घपला कर करीब 100 करोड़ रुपये हड़पने वाले महामेधा अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक के सचिव समेत 24 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। बैंक में तीन जिलों (गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर व हापुड़) के 37 हजार से अधिक लोगों के खाते थे।
वर्ष 2015 में लखनऊ के पायनियर अर्बन कोऑपरेटिव बैंक को पहली बार आरबीआई अपनी निगरानी में लाया। वित्तीय अनियमितताएं मिलने के बाद बैंक का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया। बैंक बंद होने के बाद भी इसके करीब 3000 ग्राहकों की डूबी रकम वापस काफी हद तक बीमा की वजह से वापस मिली।
यूनाइटेड कामर्शियल कोआपरेटिव बैंक कानपुर का लाइसेंस भारतीय रिजर्व बैंक ने आठ साल पहले रद्द किया। सहकारी समितियां उत्तर प्रदेश के रजिस्ट्रार से भी बैंक को बंद करने और एक परिसमापक नियुक्त करने का आदेश जारी किया गया।
रिज़र्व बैंक ने लाइसेंस रद करने की वजह बताते हुए कहा कि बैंक का संचालन वर्तमान और भविष्य के जमाकर्ताओं के हितों के लिए हानिकारक तरीके से किया जा रहा था। बैंक अपने ग्राहकों की रकम लौटाने की स्थिति में भी नहीं बचा था। यही स्थिति मेरठ के मर्केन्टाइल यूनाइटेड कोआपरेटिव बैंक की हुई। प्रबंधन की वित्तीय अनियमितताओं की वजह से हजारों ग्राहकों का पैसा डूब गया था।