FRBM Act: उधारी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार में चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने समझाया, राज्य सरकार जान ले लोन लेन की लिमिट
FRBM Act: केंद्र और राज्य सरकार में उधारी को लेकर विवाद चल रहा था। लेकिन जब ये मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो इस मामले में हाईकोर्ट ने समझाया है। और कोर्ट ने बताया कि राज्य सरकार अपनी लोन लेने की लिमिट जान लेनी चाहिए। इस मामले पर कोर्ट ने बताया की सरकार के पास आमदनी और खर्च के लिए एक नियम है जिसके आधार पर खर्च को नियंत्रित किया जाता है। चलिए नीचे खबर में जानते हैं इस नियम के बारे में पूरी डिटेल.
News Hindi TV, Delhi : What is FRBM Act- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और केरल सरकार से वित्तीय विवाद पर बैठकर हल निकालने के लिए कहा है. पिछले दिनों केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court ) का दरवाजा खटखटाते हुए शिकायत की थी कि केंद्र की तरफ से राज्य सरकार को पैसा जारी नहीं किया जा रहा. केरल सरकार( Kerala Government ) की तरफ से वित्तीय जरूरतों के लिए 13,000 करोड़ रुपये जारी करने के अलावा अतिरिक्त 15,000 करोड़ रुपये देने की मांग की गई थी.
दरअसल, केंद्र सरकार( Central government ) विभिन्न प्रकार के टैक्स से मिलने वाली राशि को राज्यों को बांटती है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बैठकर हल निकालने की बात कही है. साथ ही शीर्ष अदालत ने दोनों सरकारों को यह भी सुझाव दिया कि मामले का हल नहीं निकलने तक मीडिया से बातचीत नहीं करें.
15000 करोड़ देने के लिए सरकार तैयार नहीं-
केंद्र सरकार केरल को 13,000 करोड़ रुपये देने के लिए तैयार है. लेकिन अतिरिक्त 15,000 करोड़ रुपये देने के लिए सरकार तैयार नहीं है. यह तीसरा मौका है जब शीर्ष अदालत ने आपसी चर्चा से इस मुद्दे का हल निकालने के लिए कहा है. सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत लगातार आगे बढ़ने वाली इकोनॉमी बन गया है.
साथ ही उन्होंने वित्तीय मिसमैनेजमेंट पर भी चिंता जाहिर की. उच्चतम न्यायालय ने कहा इस पूरे मामले पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. राज्यों का फाइनेंशियल मिस मैनेजमेंट( financial miss management ) ऐसा मामला है, जिसके बारे में संघ को चिंतित होना चाहिए. लेकिन क्या आपको पता है जिस फिक्सर रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट ( FRBM Act ) पर केंद्र और केरल सरकार आमने-सामने हैं वो क्या है?
क्या है एफआरबीएम एक्ट?
फिक्सर रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट ( Fiscal Responsibility and Budget Management Act ) यानी सरकारी खर्च और आमदनी का नियम देश में एक अहम कानून है. इस कानून के तहत ये तय होता है कि सरकार अपने खर्च पर ध्यान दे और उसे नियंत्रित करे. इसका मकसद सरकारी खर्च और कमाई के बीच संतुलन बनाना और सरकार के घाटे को कम करना है. इस कानून को 2003 में लागू किया गया था. तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इसे साल 2000 में पेश किया था. मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद 5 जुलाई 2004 को इसे लागू कर दिया गया था.
सरकारी खर्च और आमदनी का टारगेट-
FRBM Act सरकार को यह बताता है कि उसे अपने खर्च पर कितना लगाम लगाना चाहिए. इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी घाटे को कम करना और इसे एक निश्चित दायरे में लाना है. सरकार जितना कमाती है और जितना खर्च करती है, उन दोनों के बीच के अंतर को फिक्सल डेफिसिट ( Fiscal Deficit ) कहा जाता है. इसमें सरकार की तरफ से लिया गया उधार शामिल नहीं होता. इस एक्ट का लक्ष्य फिक्सल डेफिसिट को धीरे-धीरे कम करना है. इसके अनुसार आदर्श स्थिति यही है कि सरकार उतना ही खर्च करें जितना वह कमाती है.
एफआरबीएम एक्ट ( FRBM Act ) के अनुसार सरकार को अपने खर्च और कमाई के बारे में साफ जानकारी देनी चाहिए. सरकार को बताना होता है कि वह कितना खर्च कर रही है और कितना कमा रही है. साथ ही यह भी जानकारी देनी होती है कि सरकार ने अपने लक्ष्यों को पूरा करने में कितनी सफलता हासिल की है.
क्यों जरूरी है एफआरबीएम एक्ट-
सालाना आम बजट पेश करते हुए सरकार की तरफ से आर्थिक नीतियों के बारे में जानकारी दी जाती है. इससे यह भी पता चलता है सरकार FRBM Act के तहत तय किए गए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कितनी गंभीर है. यह कानून सरकार को यह भी बताता है कि उसे कितना उधार लेना चाहिए और कब तक उस उधार को चुका देना चाहिए. इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और भविष्य के लिए बेहतर स्थिति बनती है.
बजट( Budget ) भाषण में वित्त मंत्री की तरफ से आने वाले साल के लिए सरकारी खर्च और कमाई के बीच के अंतर यानी फिक्सल डेफिसिटी का लक्ष्य तय किया जाता है. यह लक्ष्य FRBM Act का पालन करने के लिए जरूरी होता है. यदि सरकार को इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपने काम करने के तरीके में बदलाव की जरूरत होती है तो संबंधित बदलाव के बारे में बजट में सीधे तौर पर बताया जाता है या उनका संकेत दिया जाता है.
लोन लेने की लिमिट-
एफआरबीएम एक्ट ( FRBM ) 2003 केंद्र और राज्य सरकारों के लिए वित्तीय अनुशासन बनाने के लिए बनाया गया था. इस एक्ट के तहत राज्यों के लिए लोन लेने की लिमिट तय की गई है. इसके तहत राज्यों के लोन लेने की लिमिट जीडीपी का 3 प्रतिशत है. कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के लिए राजकोषीय घाटे की सीमा को 3% से बढ़ाकर 3.5% कर दिया.
आमतौर पर, FRBM Act के अनुसार राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3% से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन महामारी के कारण बढ़े हुए खर्च, कम आमदनी और ज्यादा उधारी को देखते हुए राज्य सरकारों ने इस सीमा को 4% या 5% तक बढ़ाने की मांग की थी.
हालांकि लोन( Loan ) की यह लिमिट कई चीजों पर निर्भर करती है. यदि किसी राज्य का राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत से ज्यादा है तो उसे कम लोन लेने की अनुमति होगी. इसके अलावा यदि किसी राज्य का लोन और जीडीपी का एवरेज 25% से ज्यादा है तो उसे भी कम लोन लेने की अनुमति होगी. इसके अलावा यदि किसी राज्य की लोन चुकाने की क्षमता कम है तो उसे भी कम लोन लेने की अनुमति होगी.