News hindi tv

High Court's Decision on Alimony : हाईकोर्ट ने बताया अविवाहित बेटी पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है या नहीं

High Court's Decision on Alimony : अविवाहित बेटियों की स्थिति हमारे देश में काफी ट्रिकी है। क्योंकि एक समय के बाद ना उसके पिताजी और ना ही उनका भाई उनकी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार होते हैं। ऐसे में वह काफी परेशानी में फंस जाती हैं। हाईकोर्ट में एक ऐसा ही मामला आया है जिसमें हाईकोर्ट ने बताया है कि अविवाहित बेटी अपने पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है या नहीं तो ऐसे में आईए जान लेते है इस अपडेट से जुड़ी पूरी खबर...

 | 
High Court's Decision on Alimony : हाईकोर्ट ने बताया अविवाहित बेटी पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है या नहीं

NEWS HINDI TV, DELHI : अविवाहित बेटियों( Unmarried Daughters ) की स्थिति हमारे देश में काफी ट्रिकी है। क्योंकि एक समय के बाद ना उसके पिताजी और ना ही उनका भाई उनकी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार होते हैं। ऐसे में वह काफी परेशानी में फंस जाती हैं। सरकार के कई योजनाओं( plans ) में भी किसी भी पिताजी की सहायक राशि पर उनकी बालिग बेटियों का हक नहीं होता क्योंकि बालिग होने का मतलब है आत्मनिर्भर होना।


लेकिन क्या सही में? बालिग तो 18 साल के ऊपर हर कोई हो जाता है लेकिन 25 साल से पहले शायद ही किसी को नौकरी मिलती है और वह आत्मनिर्भर( Self-reliance ) बनता है। ऐसे ही एक स्थिति एक महिला और उसकी बेटी के सामने आ खड़ी हुई जिसके कारण उस महिला ने अदालत में याचिका डाल दी। इसी याचिका की सुनवाई करते हुए बांबे हाइकोर्ट ने कहा है कि अविवाहित बेटियां अपने पिता से गुजारा खर्च पाने का हक रखती है, भले उनकी उम्र 18 साल की पार कर चुकी हों। 
बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि तलाकशुदा या अलग रह रहे माता-पिता की बेटियां अपने पिता से गुजारा खर्च की हकदार हैं।

बेटी ओर से मां भी कर सकती है गुजारा खर्च का दावा:


बांबे हाईकोर्ट( Bombay High Court ) की जस्टिस भारती डांगरे ने इस याचिका की सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा कि अपनी बालिग बेटी की ओर से उसकी मां भी गुजारा खर्च का दावा कर सकती है। हाईकोर्ट( High Court ) ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनाया है। 


इस महिला ने सबसे पहले फैमिली कोर्ट में अपनी बेटी के गुजारे भत्ते के लिए याचिका डाली थी। लेकिन फैमिली कोर्ट( family court ) ने महिला की इस याचिका की अर्जी को खारिज कर दिया था। जिसके लिए महिला ने हाई कोर्ट में याचिका डाली। याचिका में महिला ने अपनी 19 साल की बेटी के लिए उसके पिता से गुजारा खर्च का दवा किया।

लॉन्च हो गया Poco का सबसे सस्ता 5G स्मार्टफोन, फीचर्स महंगे वाले


क्या है मामला?


इस महिला की शादी 1988 में हुई थी और फिर वह अपने पति से 1997 में अलग हो गई। महिला अपने दो बेटे और एक बेटी के साथ रहती है। जब तक बच्‍चे नाबालिग थे, पिता उस महिला को उनकी परवरिश के लिए हर महीने नियमित गुजारा खर्च देता रहा था। जैसे ही बेटी की उम्र 18 साल पार हुई पिता ने उसकी मां को बेटी का गुजारा देने से मना कर दिया।

बेटी के 18 साल के होते ही बंद कर दिया गुजारा देना:


बेटी की मां ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दिया। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि "भले ही उसकी बेटी बालिग हो गई है लेकिन अब भी वह अपनी उच्‍च शिक्षा के लिए आत्मनिर्भर नहीं हुई है। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसके बेटे भी मदद करने की हालत में नहीं हैं। एक बेटा अब भी नौकरी खोज रहा है जबकि दूसरा अपना एजुकेशन लोन की किश्‍तें चुका रहा है।"

धारा 125 (1) (बी) के अनुसार फैमिली कोर्ट ने खारिज की अर्जी:


महिला को उसका पति प्रति महीने 25,000 रुपये गुजारे भत्ते के तौर पर देता है। उसने अपनी बेटी के लिए प्रति महीने 15,000 रुपये का अतिरिक्‍त गुजारा भत्ता( alimony ) मांगा था। फैमिली कोर्ट ने इस दावे को नहीं माना और अर्जी खारिज कर दी। फैमिली कोर्ट ने अपने फैसले में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (1) (बी) का हवाला देते हुए कहा था कि गुजारा खर्च सिर्फ नाबालिग बच्‍चों को ही मिल सकता है।

बालिग बच्‍चों को भी गुजारा खर्च पाने का अधिकार:


बांबे हाईकोर्ट की जस्टिस डांगरे ने अपने फैसले में कहा कि सीआरपीसी के तहत बालिग बच्‍चों के लिए भी गुजारा खर्च का प्रावधान है यदि बच्‍चा किसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण खुद की देखभाल करने में असमर्थ हो। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court ) और कई हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों का भी उल्लेख करते हुए पति को अपनी बालिग अविवाहित बेटी को गुजारा भत्ता देने का आदेश सुनाया।