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देश में विवाह की संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं, Supreme Court की महत्वपूर्ण टिप्पणी

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट में एक मामला आया जिसमें एक 44 वर्षीय अकेली महिला ने मां बनने की इजाजत मांगी है। इस मामले पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 'देश में विवाह संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं'...चलिए नीचे खबर में जानते हैं क्या है पूरा मामला.
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देश में विवाह की संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं, Supreme Court की महत्वपूर्ण टिप्पणी

NEWS HINDI TV, DELHI: सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court  ) ने देश में विवाह की संस्थाओं को लेकर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह की संस्था को बचाया और संरक्षित किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत को पश्चिमी देशों की राह पर नहीं जाने दिया जा सकता जहां शादी के पहले बच्चों का जन्म होना सामान्य बात है। एक 44 वर्षीय अविवाहित महिला ने सरोगेसी के जरिए मां बनने( becoming a mother through surrogacy ) की इजाजत मांगी है क्योंकि इसकी अनुमति नहीं है।

जस्टिस बी वी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि एक अविवाहित महिला बच्चे को जन्म दे रही है। यह भारतीय समाज में विवाह के नियम( Rules of marriage in Indian society ) में नहीं है बल्कि अपवाद है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कहीं देश में विवाह संस्था खतरे में तो नहीं।

देश में विवाह की संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं? 


जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा, “यहां विवाह संस्था के अंदर मां बनना एक आदर्श है। विवाह संस्था के बाहर मां बनना कोई आदर्श नहीं है। हम इसके बारे में चिंतित हैं। हम बच्चे के भलाई के दृष्टिकोण से बात कर रहे हैं। क्या देश में विवाह की संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं? हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। विवाह की संस्था को संरक्षित किया जाना चाहिए। आप हमें रूढ़िवादी कह सकते हैं और हम इसे स्वीकार करते हैं।”

अकेली अविवाहित महिला को नहीं है अनुमति-


याचिकाकर्ता एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। उन्होंने अपने वकील श्यामल कुमार के माध्यम से सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम की धारा 2 (एस) की वैधता को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। ये धारा एक अविवाहित भारतीय महिला के रूप में परिभाषित करती है जो विधवा या तलाकशुदा है। उसकी आयु 35 से 45 वर्ष के बीच होनी चाहिए और सरोगेसी( surrogacy  ) का लाभ उठा सकती है। इसका मतलब यह है कि अकेली अविवाहित महिला को सरोगेसी के जरिए मां बनने की अनुमति नहीं है।

मां बनने के और भी हैं तरीके -


सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने महिला से कहा कि मां बनने के और भी तरीके हैं और सुझाव दिया कि वह शादी कर सकती है या बच्चा गोद ले सकती है। लेकिन उसके वकील ने जवाब दिया कि वह शादी नहीं करना चाहती थी और गोद लेने की प्रक्रिया लंबी है। पीठ ने कहा, “44 साल की उम्र में सरोगेट बच्चे का पालन-पोषण( surrogate parenting ) करना मुश्किल है। आपको जीवन में सब कुछ नहीं मिल सकता है। आपके मुवक्किल ने अविवाहित रहना पसंद किया है। हम समाज और विवाह संस्था के बारे में भी चिंतित हैं। हम पश्चिम की तरह नहीं हैं जहां कई बच्चे अपनी मां और पिता के बारे में नहीं जानते हैं। हम नहीं चाहते कि बच्चे अपने माता-पिता के बारे में न जाने।”

अदालत ने कहा, “विज्ञान काफी आगे बढ़ चुका है, लेकिन सामाजिक मानदंड नहीं और ऐसा कुछ अच्छे कारणों से है।” प्रावधान को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह भेदभावपूर्ण है क्योंकि एक अकेली महिला भी अधिनियम के तहत पात्र होने के लिए शादी कर सकती है और कुछ समय बाद उसे तलाक मिल सकता है। लेकिन पीठ ने कहा कि यह इतना आसान नहीं है। अदालत ने कहा कि वह अधिनियम के अन्य प्रावधानों को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ उनकी याचिका पर सुनवाई करेगी।