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High Court ने बेनामी संपत्ति को लेकर सुनाया फैसला,जानिए कया होती है बेनामी प्रोपर्टी

Prohibition of Benami Property Transactions : मनुष्य जीवन में संपत्ति का बहुत महत्व है। क्योंकि यह जीवन यापन में सहायता करती है। यह संपत्ति दो तरह की होती है- चल और अचल। चल सम्पत्ति में रुपये-पैसे, स्वर्णाभूषण आदि आते हैं, जबकि अचल संपत्ति में जमीन-जायदाद, मकान-दुकान-बगान आदि आते हैं। लोग सम्पत्ति प्राप्त करते ही बहक जाते हैं। इसका दुरुपयोग करने लगते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने नाम से भी बनाते हैं और अपने मित्रों, परिजनों के नाम से भी। जब हम दूसरों के नाम से अपनी कोई संपत्ति बनाते हैं तो वह बेनामी सम्पत्ति कहलाती है।

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High Court ने बेनामी संपत्ति को लेकर सुनाया फैसला,जानिए कया होती है बेनामी प्रोपर्टी

NEWS HINDI TV, DELHI: लेनदेन में कोई व्यक्ति अगर अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति (property in wife's name)खरीदता है तो उसे हमेशा बेनामी संपत्ति नहीं कहा जा सकता है। यह बात कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) ने कही। न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी चटर्जी की खंडपीठ ने को कहा कि भारतीय समाज में, यदि कोई पति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति हासिल करने के लिए धन की आपूर्ति (money supply) करता है, तो इस तरह के तथ्य का मतलब बेनामी लेनदेन नहीं है। पीठ ने कहा कि धन का स्रोत निस्संदेह एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन निर्णायक नहीं है।


अदालत उस मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें एक बेटे ने अपने पिता पर मां को बेनामी संपत्ति देने का आरोप लगाया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता अपने आरोप को साबित करने में विफल रहा कि विचाराधीन संपत्ति बेनामी थी।
 

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बेनामी प्रॉपर्टी की हाई कोर्ट ने बताई परिभाषा


अदालत ने कहा, 'हस्तांतरण एक बेनामी लेनदेन है, यह दिखाने का कम हमेशा उस व्यक्ति पर होता है जो इसका दावा करता है।' अदालत ने कहा कि आम तौर पर दो प्रकार के बेनामी लेनदेन को मान्यता दी जाती है। पहले प्रकार में, एक व्यक्ति अपने पैसे से एक संपत्ति खरीदता है लेकिन दूसरे व्यक्ति के नाम पर दूसरे व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के इरादे से नहीं। दूसरा प्रकार है बेनामी लेनदेन के रूप में जाना जाता है, जहां संपत्ति का मालिक संपत्ति के शीर्षक को स्थानांतरित करने के इरादे के बिना दूसरे के पक्ष में एक हस्तांतरण निष्पादित करता है। अदालत ने कहा बाद के मामले में ट्रांसफर करने वाला असली मालिक बना रहता है।
 


पति ने पत्नी के नाम पर खरीदा था प्लॉट


कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) जिस मामले की सुनवाई कर रहा था, उसमें एक व्यक्ति ने 1969 में अपनी पत्नी के नाम पर एक संपत्ति खरीदी थी। जब संपत्ति खरीदी गई थी तब पत्नी एक गृहिणी थी, आय का कोई स्रोत नहीं था। उसके पति ने उसके नाम जमीन की रजिस्ट्री (Land Registry) कराई और उस पर दो मंजिला मकान बना लिया। 1999 में उनकी मृत्यु के बाद, उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार, उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा (one third of the property) मिला।
 


 

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मां ने बेटी के नाम की प्रॉपर्टी


बेटा 2011 तक उस घर में रहा, और जब वह बाहर चला गया, तो वह चाहता था कि संपत्ति उसके, उसकी मां और बहन के बीच बंट जाए। मां और बेटी इस प्रस्ताव पर राजी नहीं हुईं। इसके बाद बेटे ने बेनामी लेनदेन का आरोप (Allegations of benami transactions) लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।


मामले को जटिल बनाने के लिए, अपने बेटे से चिढ़कर मां ने 2019 में अपनी बेटी के नाम पर संपत्ति कर दी। मां ने बेटी को यह प्रॉपर्टी गिफ्त के तौर पर दी। बाद में उनका निधन हो गया। एचसी ने बेटे के विवाद को खारिज कर दिया।