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Success Storie upsc : आखों की रोशनी चली गई थी नहीं मानी फिर भी हार, ऐसे बने आईएएस

Success Storie : कबीर दास जी के दोहे में उल्लिखित है कि मन के हारे हार हैं मन के जीते जीत। ये सच हैं। ऐसी ही कहानी आईएएस अजीत कुमार यादव की है, जो दृष्टिबाधित होने के बाद भी सफलता के शिखर पर जा पहुंचे, जानिए पूरी कहानी...
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Success Storie upsc : आखों की रोशनी चली गई थी नहीं मानी फिर भी हार, ऐसे बने आईएएस

NEWS HINDI TV, DELHI: साधारण भाषा में देखें तो यदि किसी काम को करने से पहले ही हम हार मान लें तो वास्तव में ही हम उस काम को नहीं कर पाते हैं। अगर उस काम को लगन और मेहनत से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। ऐसा ही आईएएस अजीत कुमार यादव ( IAS Ajit Kumar Yadav ) ने कर दिखाया। 

 

 

अपने मेहनत के दम पर अजीत ने 2008 में सीएसई के लिए उपस्थित हुए और 208 वीं रैंक हासिल की। वह आईएएस पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन उन्हें भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा में एक पद की पेशकश की गई।


भारत में यूपीएससी (upsc) की परीक्षा पास करना सबसे कठिन माना जाता है। एक आम छात्र के लिए इस परीक्षा को पास करना जितना मुश्किल होता है उतना ही मुश्किल एक दृष्टिबाधित परीक्षार्थी के लिए है। हालांकि, दृष्टिबाधित होने के बावजूद अजित कुमार यादव ( Ajit Kumar Yadav )ने सभी चुनौतियों को हराते हुए यूपीएससी की परीक्षा (upsc exem) पास कर आईएएस बनकर समाज के लिए एक मिसाल बने।


दृष्टिबाधित होने के बावजूद जारी रखी मेहनत:

महज पांच साल की उम्र में डायरिया की वजह से आंखों की रोशनी खोने के बावजूद अजीत कुमार ने हार नहीं मानी। अजीत की शुरुआती पढ़ाई 90 के दशक में शुरू हुई थी। तब टेक्नोलॉजी ज्यादा विकसित नहीं थी। ऐसे में अजीत ने दृष्टिबाधित होकर ही अपनी पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्हें कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। अजीत ने इसी हालत में यूपीएससी की तैयारी भी की थी।


लंबे संघर्ष के बाद बने आईएएस:

अपनी मेहनत के दम पर अजीत ने 2008 में सीएसई की परीक्षा में शामिल हुए और 208 वीं रैंक हासिल की। वह आईएएस पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन उन्हें भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा में पद ऑफर किया गया था।


इसके दो साल बाद साल 2010 में  केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा एक अनुकूल फैसले के बाद भी उन्हें आईएएस पद नहीं दिया गया। अजीत (Ias ajit kumar yadav) अपने साथ हो रहे इस भेदभाव के लिए लड़ाई लड़ी। उनके इस संघर्ष के बाद दिव्यांगों के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मंच और राजनेता बृंदा करात के हस्ताक्षेप के बाद अजीत को 2012 में नियुक्ति पत्र दिया गया।