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142 साल पुराना ये कानून इस Bank को पड गया भारी, देना पड़ा इतना जुर्माना

आप जानते ही हैं कि आजकल हर सिस्टम डिजिटल होता जा रहा हैं। अब चेक से पेमेंट करना तो जैसे लोग भुल ही गए हैं। इसी के चलते आपको बता दें कि हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया हैं कि बैंक को चेक क्लियरेंस से जुड़ा  142 साल पुराना कानून याद दिला कर इतना मुआवजा देना पड़ गया.

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142 साल पुराना ये कानून इस Bank को पड गया भारी, देना पड़ा इतना जुर्माना

NEWS HINDI TV, DELHI : Digital Banking : डिजिटल होती दुनिया में हमारे फोन ने बहुत से काम आसान किए हैं. बैंकिंग लेनदेन तो अब पलक झपकते ही चुटकियों में हो जाता है. इसने चेक से लेनदेन भी कम कर दिया है.

ऐसे में अगर कोई बैंक को चेक क्लियरेंस से जुड़ा 142 साल पुराना कानून याद दिलाए, तब क्या होता है? अरे जनाब, ऐसा होने पर बैंक को मुआवजा देना पड़ता है. ये हकीकत में हुआ है. चलिए बताते हैं पूरा किस्सा?


देश में अब बैंकों के चेक की क्लियरेंस के लिए ‘चेक ट्रंकेशन सिस्टम’ (CTS) आ चुका है. इसके चलते चेक की फिजिकल क्लियरेंस लगभग बंद हो चुकी है. लेकिन 1881 का एक कानून देश में अब भी लागू है, जो फिजिकली चेक क्लियरेंस के कई तरीकों को वैध बनाता है. इसी में से एक नियम बैंक ऑफ बड़ौदा को भारी पड़ गया.

बैंक को देना पड़ा मुआवजा -


ये मामला देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का है. टीओआई की एक खबर के मुताबिक इंश्योरेंस सेक्टर में काम करने वाले अविनाश नन्स को सारस्वत बैंक ने एक चेक दिया था, जिसे उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया में जमा कराया. सारस्वत बैंक ने अविनाश नन्स के फेवर में ये चेक एंडोर्स किया था. साथ में अन्य बैंक से सिग्नेचर वेरिफिकेशन भी कराना था.


बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारियों ने ये कहकर चेक को रिटर्न कर दिया कि इस पर क्रॉस का मार्क है और कानून के हिसाब से ये नॉन-ट्रांसफरेबल चेक है. ऐसे चेक्स को थर्ड पार्टी के फेवर में एंडोर्स नहीं किया जा सकता. बैंक ऑफ इंडिया को यही गलती भारी पड़ गई क्योंकि वह 1881 का ‘नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट-1881 भूल चुकी थी.

अविनाश ने इसकी शिकायत भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से की और आखिर में बैंक को इसकी वजह से मामूली ही सही लेकिन 1,000 रुपए का मुआवजा अविनाश नन्स को देना पड़ा.

क्या है ये 142 साल पुराना कानून?


साल 1881 का ‘नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट’ चेक, प्रॉमिसरी नोट्स, बिल्स ऑफ एक्सचेंज एवं चेक्स और हुंडिस जैसे सभी पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स की ओनरशिप किसी थर्ड पार्टी को ट्रांसफर करने का अधिकार देता है.

इसके लिए भुगतान करने वाली पार्टी को चेक के पीछे इसे थर्ड पार्टी के पक्ष में एंडोर्स करना होता है, बस. बैंक भले आज इस तरह की चेक एंडोर्स रिक्वेस्ट स्वीकार नहीं करते हों, लेकिन 142 साल पुराना ये कानून अब भी चलन में है.