Success Story: गुब्बारे बेचकर कमाया पैसा और फिर खड़ी कर दी 45,000 करोड़ की कंपनी

NEWS HINDI TV, DELHI : हर एक सफल आदमी अपने अतीत में किसी न किसी कठिन दौर( tough times ) से निकलकर आता है चाहे वह कोई फिल्म-स्टार हो या काई उद्योगपति( Industrialist )। ऐसी ही एक कहानी लेकर आए हैं एक उद्योगपति की जिसने अपने समय में बहुत से कठिन चैलेंजेज देखे जिन पर आप यकिन भी नहीं कर पाएंगें।
ऐसे बने कंपनी के मालिक:
यह कहानी टायर बनाने वाली कंपनी MRF के फाउंडर के एम मैम्मेन मप्पिलाई की है. कभी मैम्मेन मप्पिलाई( Mammen Mappillai ) की एक छोटी-सी कंपनी थी जहाँ वह गुब्बारे बनाते थे और फिर उन्हें खुद सड़क पर जाकर बेचते थे. उस समय उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब वे देश की दिग्गज टायर निर्माता कंपनी एमआरएफ (मद्रास रबर फैक्ट्री) के मालिक बन जायेंगे.
परिवार के संघर्ष की कहानी:
किसी जमाने में मैम्मेन मप्पिलाई के पिता एक बैंक के साथ-साथ एक अखबार के भी मालिक थे, लेकिन उनकी सारी संपत्ति तत्कालीन त्रावणकोर रियासत ने जब्त कर ली थी. उन्हें गिरफ्तार करके 2 साल तक जेल में रखा गया. उस वक्त मैम्मेन मप्पिलाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज( Madras Christian College ) में पढ़ रहे थे. अपने पिता के बाद मानो मैम्मेन मप्पिलाई के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट गया.
ऐसे मुश्किल वक्त में हालात ऐसे हो गए कि उन्हें सेंट थॉमस( st thomas ) हॉल के फर्श पर सोना पड़ा. मम्मन ने जैसे-तैसे संघर्ष के साथ अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने गुब्बारे बनाना और बेचना शुरू कर दिया.
ऐसे मिला टायर बनाने का आईडिया:
1952 में मैम्मेन मप्पिलाई को पता चला कि एक विदेशी कंपनी भारत में एक रीट्रेडिंग प्लांट( retreading plant ) को ट्रेड रबर की आपूर्ति कर रही है. रीट्रेडिंग का मतलब पुराने टायरों को पुन: नया जैसा बनाना है. मैम्मेन मप्पिलाई ने सोचा कि वह भी यह काम कर सकते हैं.
गुब्बारे बेचने से हुई सारी कमाई बिजनेस में लगा दी:
इसके बाद मैम्मेन मप्पिलाई ने गुब्बारे बेचकर जो भी पैसा कमाया था, उसे इस व्यवसाय में लगा दिया. उन्होंने बिजनेस करने के लिए एक बड़ा जोखिम लिया लेकिन, उन्हें इसमें जबरदस्त सफलता मिली. दिलचस्प बात यह है कि एमआरएफ( MRF ) एकमात्र भारतीय कंपनी थी जो ट्रेड रबर का निर्माण कर रही थी और उस समय इस क्षेत्र की अन्य सभी कंपनियां विदेशी( foreign companies ) थीं.
मैममेन यहीं नहीं रुके :
महज 4 साल के अंदर एमआरएफ की बाजार हिस्सेदारी 50% तक पहुंच गई और कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों( international companies ) ने इसके चलते भारत छोड़ दिया. मैममेन यहीं नहीं रुके और उन्होंने टायर निर्माण व्यवसाय में उतरने का फैसला भी किया.
लगाई टायर बनाने की फैक्ट्री:
1961 में मैम्मेन मप्पिलाई ने टायर बनाने के लिए एक फैक्ट्री शुरू की. हालाँकि, कंपनी तकनीकी रूप से इतनी मजबूत नहीं थी कि टायर बना सके और इसीलिए MRF ने अमेरिकी कंपनी( American company ) मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के साथ पार्टनरशिप की. इसी साल कंपनी मद्रास स्टॉक एक्सचेंज( Madras Stock Exchange ) में अपना IPO भी लेकर आई. 1963 तक एमआरएफ एक जाना-माना नाम बन गया.
45,466 करोड़ रुपये की कंपनी:
आज की तारीख में टायर इंडस्ट्रीज में MRF एक बड़ा नाम बन चुका है. कपंनी का मार्केट कैप 454.66 बिलियन यानी 45,466 करोड़ रुपये है. एमआरएफ के एक शेयर( share ) की कीमत 1,07,384 रुपये है. यह भारतीय शेयर बाजार( Share Market ) का संभवत: सबसे महंगा स्टॉक है. 1990 में कंपनी के एक शेयर की कीमत 332 रुपये थी.