Business Idea : पत्नी की सैलरी से होता था घर का गुजारा, छोटे कमरे से शुरू किया बिजनेस आज बन चुके है करोड़ों के मालिक

Startup Idea : अच्छी नौकरी और अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए एक इंसान क्या कुछ नहीं करता। हमारी जिंदगी को आसान बनाने के लिए इस व्यक्ति ने सबसे मुश्किल इन दो कामों को आसान कर दिया है। जानिए आखिर कैसे-
 

NEWS HINDI TV, DELHI: आज हम बात करने वाले हैं उस कंपनी की, जिसने भारत में करोड़ों युवाओं की जिंदगी में क्रांति ला दी. उसने दो बेहद मुश्किल कार्यों को चुटकी का काम बना दिया. वे दोनों कठिन कार्य हैं- बेहतर जिंदगी के लिए अच्छी नौकरी खोजना और शादी के लिए जीवनसाथी खोजना. आप ही बताएं क्या ये दोनों काम आसान हैं? नहीं ना. इनको आसान बनाया इंफोएज (Info Edge) ने. क्या कहा, आपने इंफोएज़ कंपनी के बारे में नहीं सुना? अरे ठहरिए तो, ज़रूर सुना होगा! क्या आपने नौकरी डॉट कॉम (Naukari.com) के बारे में सुना है? क्या आपने जीवनसाथी डॉट कॉम (Jeevansathi.com) के बारे में सुना है? दरअसल, ये दोनों पोर्टल इंफोएज़ के ही प्रॉडक्ट हैं

 


इस कंपनी को बनाने वाले शख्स का नाम है संजीव बिकचंदानी (Sanjeev Bikhchandani). उन्हें 2020 में पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है. इंफोएज़ के बारे में अगर जानना है तो संजीव बिकचंदानी के बारे में भी साथ-साथ जानना होगा. दोनों को अलग नहीं किया जा सकता. तो चलिए पहले थोड़ा संजीव के बारे में जान लेते हैं.

 

 

 

नौकरी नहीं, कुछ अपना करना था:

संजीव बिकचंदानी जब पढ़ाई कर रहे थे, तो उन्हें लगता था कि कुछ बड़ा करना चाहिए. वो चाहते थे कि कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद कुछ समय तक नौकरी करनी है और फिर कुछ बड़ा काम करना है. लेकिन क्या करना है? इसके बारे में उनके पास कोई आइडिया नहीं था. संजीव ने इकॉनॉमिक्स स्पेशलाइज़ेशन के साथ आर्ट्स में बीए किया और 1984 में अकाउंट्स एग्जीक्यूटिव की नौकरी पकड़ ली. तीन साल जॉब की. 1987 में जॉब छोड़कर आईआईएम (IIM) की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद चले गए. 1989 में उन्हें कैंपस प्लेसमेंट इवेंट में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline) में प्रॉडक्ट एग्जीक्यूटिव की जॉब मिल गई. इस कंपनी को तब हिन्दुस्तान मिल्कफूड मैनुफैक्चरर्स (HMM) के नाम से जाना जाता था.


पत्नी की सैलरी से चलाया खर्च:

नौकरी के दौरान उन्हें 8 हजार रुपये महीना मिलते थे. और यकीन मानिए 1990 में 8000 रुपये महीना कतई कम नहीं था. लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है. उन्होंने नौकरी छोड़ने से पहले अपनी पत्नी सुरभि से बात कर ली थी. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा- ‘अब आपकी सैलरी से ही घर का खर्च चलेगा, क्योंकि मैं नौकरी छोड़कर अपना काम करने वाला हूं.’ सुरभि भी चाहती थीं कि वे अपना बिजनेस शुरू करें. बता दें कि सुरभि IIM में उनके साथ ही पढ़ती थीं. बाद में दोनों ने शादी कर ली.

रखी दो कंपनियों की नींव:

संजीव बिकचंदानी अपने घर में नौकर के कमरे से काम शुरू किया, जिसके लिए वे अपने पिता को किराया भी देते थे. 1990 में उन्होंने अपने एक मित्र के साथ दो कंपनियों की नींव रखी. एक का नाम था इंडमार्क (Indmark) और दूसरी इंफोएज़ (Info Edge). तीन साल साथ काम करने के बाद 1993 में दोनों पार्टनर अलग हो गए. संजीव बिकचंदानी के हिस्से में आई इंफोएज़. इंफोएज़ का मुख्य काम था सेलरी से संबंधित सर्वे करना. इंफोएज़ ने शुरुआत में सर्वे किया कि एंट्री लेवल पर MBAs और इंजीनियर्स को कौन-सी कंपनी कितना पैसा देती है. वे इस तरह की विस्तृत रिपोर्ट बनाते थे और अलग-अलग कंपनियों को बेचते थे.


चूंकि शुरुआती दिनों में कमाई इतनी नहीं थी कि बचत हो पाती तो संजीव ने कई संस्थानों में जाकर कोचिंग क्लासें भी दी. इन क्लासेज से वे तकरीबन 2000 रुपये महीना कमा पाते थे ताकि अपना खुद का खर्च निकाल पाएं.

नौकर के कमरे में लौटना पड़ा:

दोनों पार्टनर्स के अलग होने के बाद संजीव बिकचंदानी को अपने उसी कमरे में लौटना पड़ा, जहां से उन्होंने अपना काम शुरू किया था. ये कमरा उनके खुद के घर में नौकर के लिए था. उन्होंने अपने खर्चे कम कर दिए. अपने खर्च पूरे करने के लिए उन्होंने एक कंपनी में कंसल्टिंग एडिटर की नौकरी कर ली. यहां उन्होंने लगभग 4 साल बिता दिए.

यूं आया naukari.com का विचार:

1996 में अक्टूबर का महीना था. दिल्ली में आईटी एशिया एग्जिबिशन (IT Asia exhibition) चल रही थी. संजीव वहां पहुंचे. उनकी नज़र एक स्टॉल पर पड़ी, जहां लिखा था WWW. संजीव स्टॉल पर पहुंचे और पूछने पर पता चला कि वीएसएनएल (VSNL) के ई-मेल अकाउंट बेचे जा रहे थे. संजीव के पूछने पर विक्रेता ने बताया कि ई-मेल क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे होता है. इसके बाद उसने इंटरनेट पर कुछ ब्राउज़ करके भी दिखाया कि कैसे दुनियाभर की कई जानकारियां इंटरनेट पर पाई जा सकती हैं.­