High Court : 1998 में शादी, 2006 से रह रहे थे अलग, अब हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में दिया बड़ा फैसला
High Court : हाईकोर्ट में तलाक के मामले आते रहते हैं जिनमें अलग-अलग वजहें होती है लेकिन कोर्ट में एक ऐसा मामला आया जिसमें इस कपल की 1998 में शादी हुई थी और दो बच्चे भी हुए लेकिन अब 2006 से अलग रह रहे थे। पति तलाक लेना चाहता था। जिस पर अब हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। चलिए नीचे खबर में जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में पूरी जानकारी.
NEWS HINDI TV, DELHI: एक कपल की 1998 में शादी हुई थी, उनके दो बेटे भी हैं मगर 2006 से अलग रह रहे थे। पति अपनी पत्नी से तलाक चाह रहा था, जिस पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट( Delhi High Court ) ने फैमिली कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए पत्नी द्वारा अत्यधिक क्रूरता का हवाला देकर एक व्यक्ति की तलाक( Divorce ) की याचिका मंजूर कर ली।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पति के खिलाफ गंभीर तथा निराधार आरोप लगाना और उसके तथा उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ना जीवनसाथी के प्रति अत्यधिक क्रूरता है।
जानिए पूरा मामला-
हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम( hindu marriage act ), 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत उस व्यक्ति का तलाक मंजूर कर लिया और पारिवारिक अदालत द्वारा उसकी तलाक याचिका को खारिज करने को रद्द कर दिया। इस जोड़े की 1998 में शादी हुई थी। उनके दो बेटे हैं। हालांकि, वे 2006 से अलग रह रहे हैं। पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने उसके परिवार के सदस्यों के प्रति असभ्य और अपमानजनक व्यवहार किया।
उन्होंने यह भी दावा किया कि 2006 में पत्नी ने उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को फंसाने के इरादे से आत्महत्या का प्रयास किया था। अदालत ने कहा कि पत्नी ने पति पर दूसरी महिला के साथ कथित अवैध संबंध सहित गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन वह इन दावों को साबित करने के लिए कोई सबूत देने में विफल रही।
इसमें कहा गया है कि हालांकि प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को कानूनी कार्रवाई( legal action ) शुरू करने का अधिकार है, लेकिन यह पत्नी की जिम्मेदारी है कि वह ठोस सबूत पेश करके यह स्थापित करे कि उसके साथ क्रूरता हुई है।
आपराधिक शिकायत करना क्रूरता नहीं-
दिल्ली हाईकोर्ट( High court ) ने कहा कि हालांकि आपराधिक शिकायत दर्ज करना क्रूरता नहीं हो सकता है और इसलिए क्रूरता के ऐसे गंभीर और अशोभनीय आरोपों को तलाक की कार्यवाही के दौरान प्रमाणित किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में प्रतिवादी ने न तो अपने आरोपों की पुष्टि की है और न ही उसके आचरण को उचित ठहराया।