Supreme Court ने भाभी के हक में सुनाया फैसला, अब देवर को देना पड़ेगा ये खर्चा

Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम में देवर भाभी को लेकर एक ऐसा मामला आया है जिसमें कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट ने भाभी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि अब ये खर्चा देवर को देना होगा। देवर ने निचली अदालत के इस फैसले को चुनौति दी थी और हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को सही ठहाराया है। आईए जानते है क्या है पूरा मामला.

 

NEWS HINDI TV, DELHI : घरेलू हिंसा कानून के तहत देवर पर भी विधवा भाभी और भतीजी का भरण पोषण खर्च उठाने की जिम्मेदारी पड़ सकती है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court ) ने घरेलू हिंसा कानून( domestic violence law ) की व्याख्या करते हुए देवर को भाभी और भतीजी का भरण पोषण खर्च उठाने के निचली अदालत और हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। कोर्ट ने देवर को भरण पोषण और अब तक का बकाया अदा करने का आदेश दिया है।

 


निचली अदालत के अंतरिम आदेश के मुताबिक देवर को प्रति माह 4000 रुपये विधवा भाभी और 2000 रुपये भतीजी को भरण पोषण खर्च देना है। इस फैसले को देवर ने सत्र अदालत, पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court Decision )  में चुनौती दी थी।


पीडि़ता और उसके बच्चे को आर्थिक मदद देने का आदेश-


न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने देवर की याचिका का निपटारा करते हुए गत माह यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून की विभिन्न धाराओं की व्याख्या करते हुए कहा कि धारा 12 (1) में पीड़िता मजिस्ट्रेट को अर्जी देकर राहत मांग सकती है और मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा से उपजी परेशानियों को देखते हुए खर्च और नुकसान की भरपाई के लिए पीडि़ता और उसके बच्चे को आर्थिक मदद( financial assistance ) देने का आदेश दे सकता है।

 


कोर्ट ने कहा कि ये सिर्फ भरण पोषण तक सीमित नहीं है बल्कि भरण पोषण भी इसमें शामिल है। कोर्ट ने धारा 2(क्यू) में दी गई प्रतिवादी की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके मुताबिक कोई भी वयस्क पुरुष पीडि़त महिला की शिकायत में प्रतिवादी हो सकता है जिससे उस महिला की विवाह के बाद घरेलू रिश्तेदारी हो और जिसके खिलाफ महिला ने राहत मांगी हो।


क्या कहता है कानून-

इसका मतलब है कि महिला पति के रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। धारा 2(एफ) मे दी गई घरेलू रिश्तेदारी की व्याख्या करते हुए कहा कि शादी के बाद हुई रिश्तेदारी या दत्तक संबंधों में कभी एक साथ संयुक्त परिवार के सदस्यों की तरह रहे हों। धारा 2(एस) में साझा घर की परिभाषा दी गई है जिसके मुताबिक पीडि़ता और प्रतिवादी कभी एक साथ साझा घर में संयुक्त परिवार की तरह रहे हों चाहें वह घर किराए का हो या फिर स्वयं का। कोर्ट ने कहा कि ये सभी परिभाषाएं इस कानून का विस्तार और कानून के तहत राहत व जिम्मेदारियां तय करने की संसद की मंशा की ओर संकेत करती हैं।

 
कोर्ट( supreme court decision ) ने मौजूदा मामले में पीडि़ता की शिकायत के अंश उद्धत करते हुए कहा कि पीडि़ता उसका पति और देवर एक साथ एक घर में संयुक्त परिवार की तरह रहते थे और दोनों भाई संयुक्त बिजनेस (किराने की दुकान चलाते थे) करते थे। कोर्ट ने कहा कि कानून की उपरोक्त धाराओं में मेरिट के आधार पर साक्ष्यों की सुनवाई ट्रायल के दौरान होगी। लेकिन अभी भरण पोषण का अंतरिम आदेश देने और उसे न्यायोचित ठहराने के लिए रिकार्ड पर पर्याप्त सामग्री मौजूद है। हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि इस आदेश का निचली अदालत में लंबित मुख्य मुकदमें की अंतिम सुनवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और अदालत कानून के मुताबिक सुनवाई करेगी।


आईए जानते हैं पूरा मामला-


मामला हरियाणा पानीपत का है जिसमें दिसंबर 2010 को पीडि़ता का विवाह हुआ था। वह ससुराल में संयुक्त परिवार में रहती थी जिसमें देवर व अन्य सदस्य भी रहते थे। उसका पति और देवर मिलकर किराने की दुकान चलाते थे और दुकान से होने वाली आय मासिक खर्च के लिए तीस-तीस हजार रुपये बांट लेते थे। पीडि़ता के पति की मृत्यु हो गई। उस समय वह गर्भवती थी बाद में जनवरी 2013 में उसकी बेटी हुई। आरोप है कि पति की मृत्यु के बाद उसकी मुश्किलें बढ़ गईं उसे ससुराल में रहने की इजाजत नहीं दी गई। पीडि़ता ने दुकान से होने वाली आय से 30000 रुपये महीने भरण पोषण दिलाने की मांग की थी। इस शिकायत पर मजिस्ट्रेट( Magistrate ) ने भरण पोषण का आदेश दिया था।