Home Loan EMI Formula : महीने की है इतनी कमाई तो ही घर खरीदने में फायदा, वरना किराए पर रहना ही सही

Home Loan EMI Formula : अगर आप घर खरीदने की प्लानिंग कर रहे है तो ये खबर आपके लिए है। दरअसल आज हम आपको अपनी इस खबर में खुद का घर खरीदने के फायदे के बारे में बताने जा रहे है। जिन्हें जान लेना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। 

 

NEWS HINDI TV, DELHI : कोई कहता है घर नहीं खरीदना चाहिए, किराये पर ही रहने में फायदा है. कुछ लोगों का मानना है कि अपना घर होना चाहिए, किराये पर रहने में आर्थिक नुकसान के साथ-साथ कई तरह की परेशानियां भी हैं. लेकिन इन दो तर्कों के पीछे आधा सच बताया जाता है. आज हम आपको पूरा सच बताएंगे. आखिर कब, किसे और क्यों घर खरीदना या फिर किराये पर ही रहना चाहिए. 

दरअसल, हर किसी का सपना होता है कि उसका अपना घर हो, फिर बाकी की चीजें. क्योंकि घर के साथ इमोशनल एंगल में जुड़ा होता है. इसलिए कुछ लोग नौकरी पकड़ते ही सबसे पहले घर या फ्लैट खरीद लेते हैं,

खासकर मेट्रो शहरों में ये प्रचलन है. ये संभव इसलिए भी है कि आसानी से होम लोन मिल जाते हैं, और डाउन पेमेंट (Down Payment) में बचत को झोंक देते हैं. 

घर खरीदने (Buy House) से पहले हर किसी को कम से कम चार पहलुओं पर विचार करना चाहिए, उसके बाद फैसला लेना चाहिए. जब आप इन पहलुओं पर विचार करेंगे, तो आपको किसी एक्सपर्ट की जरूरत नहीं पड़ेगी, आप खुद फैसला ले सकते हैं और आपके लिए पहले घर जरूरी है या फिर ये गलत कदम होगा.  

पहला मापदंड- 


इतनी होनी चाहिए सैलरी: नौकरी-पेशा लोगों को तब घर खरीदना चाहिए, जब होम लोन की EMI की राशि कमाई यानी सैलरी का केवल 20 से 25 फीसदी हिस्सा हो.

उदाहरण के तौर पर अगर आपकी महीने की सैलरी 1 लाख रुपये है, फिर आप 25 हजार रुपये महीने होम लोन की EMI चुका सकते हैं. लेकिन अगर सैलरी 50 से 70 हजार रुपये के बीच है और होम लोन लेकर घर खरीदते हैं, उसकी EMI हर 25 हजार रुपये महीने आती है तो फिर वित्तीय तौर पर ये फैसला गलत माना जाएगा.

क्योंकि होम लोन चुकाने में कम से कम 20 साल का लंबा वक्त लग जाता है. यह सोच या सलाह बिल्कुल गलत है कि घर खरीदना ही नहीं चाहिए. किराये पर ही रहने में फायदा है. अगर सैलरी की 25 फीसदी राशि ही लोन की EMI बनती है तो जरूर घर खरीदें. 

ऐसे लोगों को सलाह होगी कि अगर सैलरी 50 से 70 हजार रुपये के बीच है, फिर किराये पर रहकर बचत करें, और जब एक लाख के आसपास सैलरी पहुंच जाए, उसके बाद अधिक डाउन पेमेंट कर घर खरीद सकते हैं.

जितना अधिक डाउन पेमेंट करेंगे, उतनी कम EMI आएगी. वित्तीय तौर पर माना जाता है कि अगर किसी की सैलरी एक लाख रुपये है, तो वो 30 से 35 लाख रुपये तक का घर खरीदने का फैसला ले सकता है.

वहीं अगर सैलरी डेढ़ लाख रुपये महीने है, ऐसे लोगों के लिए 50 लाख रुपये तक घर बजट के लिए सही रहेगा. यानी हर हाल में सैलरी का अधिकतम 25 फीसदी राशि ही होम लोन की EMI होनी चाहिए. 

दूसरा मापदंड- 


हर किसी को जरूरत के हिसाब से फैसला लेना चाहिए. आप काम क्या करते हैं, आपका जॉब प्रोफाइल क्या है? इस आधार पर फैसला लेना चाहिए. अगर आप सबसे पहले घर ले लेते हैं तो फिर उस शहर में एक तरह से बंधकर रह जाएंगे. अधिकतर लोग करियर ग्रोथ की वजह से शुरुआती दौर में एक शहर से दूसरे शहर में शिफ्ट हो जाते हैं.

लेकिन पहली नौकरी के साथ ही घर खरीद लेने पर लोग नौकरी बदलने की स्थिति में नहीं रहते हैं. क्योंकि नए शहर में जाकर किराये पर रहना और फिर अपने घर को किराये पर देना वो उचित नहीं समझते. साथ ही अगर सेक्योर जॉब नहीं है तो फिर हड़बड़ी में घर न खरीदें.

तीसरा मापदंड- 


अगर घर खरीदने का फैसला कर लिया है तो फिर प्रॉपर्टी का चयन जरूर करें. अगर फ्लैट खरीदना है, तो ऐसे लोकेशन मे खरीदें जहां रेंट में अच्छी रकम मिलती हो. साथ ही फ्लैट की कीमत में सालाना कम से कम 8 फीसदी की बढ़ोतरी हो.

ताकि महंगाई के हिसाब से फ्लैट की कीमत भी बढ़ती जाए और जब होम लोन चुकता हो जाए यानी 20 साल के बाद तो फ्लैट की मौजूदा कीमत बॉयिंग प्राइस की तुलना में कम से कम तिगुनी होनी चाहिए. 

चौथा मापदंड- 


अगर निवेश को ध्यान में रखकर रियल एस्टेट (Real Estate) में निवेश करना चाहते हैं तो फिर फ्लैट खरीदने से बेहतर होगा कि टीयर-2 या टीयर-3 शहरों में लैंड से जुड़ा घर खरीदें, अगर लैंड से जुड़ा घर नहीं मिल रहा है, केवल लैंड खरीद सकते हैं.

हमेशा से फ्लैट के मुकाबले लैंड ने बेहतर रिटर्न दिया है. यही नहीं, देश के कई शहरों में बीते साल फ्लैट की कीमतों में गिरावट भी देखी गई, ऐसी स्थिति में फ्लैट खरीदना घाटे का सौदा हो सकता है. जबकि लैंड खरीदने पर आप अपने मन मुताबिक उसपर घर बनवा सकते हैं. 
   

गौरतलब है कि कुछ लोग पहली नौकरी के साथ ही घर और कार खरीद कर अपने ऊपर EMI की बोझ डाल लेते हैं. जो आगे चलकर बिल्कुल गलत फैसला साबित है. इसलिए जरूरत के हिसाब से फैसले लें.

कमाई को आधार बनाकर फैसले लेंगे तो वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. एक और काम की बात ये है कि पहली नौकरी के साथ ही अगर सेविंग (Saving) की शुरुआत कर देंगे तो 40 साल की उम्र में आप अपने रिटायरमेंट को लेकर आश्वस्त हो जाएंगे.