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Alimony Law : क्या पढ़ी लिखी पत्नी नहीं ले सकती पति से गुजारा भत्ता, जानिए क्या कहता है कानून

Alimony Law :पति-पत्नी के बीच आपसी झगड़े तो आम हैं, लेकिन जब ये कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच जाते हैं तो हालात बदल जाते हैं. कोर्ट में पत्नी तलाक के साथ-साथ अपने लिए गुजारा भत्ता और बाकी तमाम चीजों की मांग करती है. अगर पत्नी कामकाजी है और शादी से पहले भी नौकरी करती थी तो ऐसे में उसे गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता है, हालांकि कोर्ट में इसका दावा जरूर किया जा सकता है। एक MBA महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में अंतरिम गुजारा भत्ता के लिए अर्जी लगाई। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला की अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर दिया। तर्क दिया कि वह काफी पढ़ी-लिखी है। अपने आय का स्रोत ढूंढने में खुद सक्षम है। आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से।

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Alimony Law : क्या पढ़ी लिखी पत्नी नहीं ले सकती पति से गुजारा भत्ता, जानिए क्या कहता है कानून

NEWS HINDI TV, DELHI:  पत्नी ने गुजारा भत्ता के तौर पर 50 हजार रुपए महीना की मांग की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि मेंटेनेंस मांगने वाली पत्नी MBA है और अपने पति के बराबर योग्य है। उसका पति, जो पेशे से डॉक्टर है, लेकिन इस समय बेरोजगार है। गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस को लेकर आमतौर से लगता है कि इसे तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को देता है। ऐसा नहीं है आज जरूरत की खबर में जानेंगे कि किन-किन कंडीशन में कौन-कौन लोग गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस के हकदार हो सकते हैं।


 

 

 

एक्सपर्ट पैनल:

सचिन नायक, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट

नवनीत कुमार मिश्रा, एडवोकेट, लखनऊ हाई कोर्ट


सवाल: मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता का मतलब क्या है?
जवाब: जब एक व्यक्ति दूसरे को खाना, कपड़ा, घर, एजुकेशन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत की चीजों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट करता है तो उसे मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता कहते हैं।

सवाल: मौजूदा मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता की बात की गई है तो गुजारा भत्ता कितने तरह का होता है?
जवाब: हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत दो तरह का गुजारा भत्ता होता है-


अंतरिम गुजारा भत्ता या अस्थायी भत्ता

परमानेंट गुजारा भत्ता या स्थायी भत्ता

अंतरिम गुजारा भत्ता: जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही होती है, और शुरुआत में खर्चा करने के लिए रकम नहीं है। तब सेक्शन 24 के तहत कोर्ट का फैसला आने तक शिकायतकर्ता को गुजारा भत्ता मिलता रहता है।

परमानेंट गुजारा भत्ता: सेक्शन 25 के तहत तलाक के बाद मिलने वाली एलिमनी परमानेंट भत्ता कहलाती है। इस मेंटेनेंस में स्त्रीधन शामिल नहीं होता, उस पर सिर्फ पत्नी का अधिकार होता है।

भत्ता कितना होगा यह पति की आय, संपत्ति, जिम्मेदारियां आदि को देखते हुए कोर्ट तय करता है।

सवाल: पत्नी को पति से कितना प्रतिशत मेंटेनेंस मिलता है?
जवाब: आमतौर पर मेंटेनेंस के केस में लगभग 20% पति की सैलरी का पत्नी को दिलवाया जाता है।

सवाल: क्या सिर्फ पति-पत्नी ही मेंटेनेंस मांग सकते हैं?
जवाब: नहीं। अलग-अलग सिचुएशन में रिश्तेदारों से मेंटेनेंस मांगा जा सकता है। इसे नीचे लगे क्रिएटिव में पढ़ें…

ऊपर लगे क्रिएटिव को समझते हैं कि किन कंडीशन में मेंटेनेंस मांग सकते हैं-

पत्नी:

पत्नी को पति ने तलाक दे दिया हो तब।

पति से पत्नी ने तलाक ले लिया हो।

तलाक के बाद उसने दूसरी शादी नहीं की हो।

खुद का भरण-पोषण नहीं कर पा रही हो।

इन सिचुएशन में पत्नी पति से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती। जैसे-

पत्नी, खुद की कमाई से खुद का भरण-पोषण कर पा रही हो।

पत्नी जो अपने पति से बिना किसी वजह के अलग रह रही हो।

पति-पत्नी आपसी समझौते से अलग रह रहे हों।

पत्नी का शादी के बाद भी किसी और से रिलेशन हो।


पति: नीचे लिखे सिचुएशन में मांग सकता है...

पति जब बेरोजगार है और पत्नी के पास कमाई का साधन हो।

शारीरिक या मानसिक तौर से कमजोर पति जो पैसे कमाने के लायक नहीं और उसकी पत्नी कमा रही हो।

पति-पत्नी का कोर्ट में केस चल रहा हो, और पति के पास फीस के पैसे न हो।

पति के पास बुनियादी जरूरतों के लिए पैसे न हो।


बच्चे: ये शर्तें कानून में रखी गई है...

नाबालिग बच्चे इस धारा के तहत अपने पिता से भरण-पोषण यानी मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं। इनमें जायज के साथ नाजायज बच्चे भी शामिल हैं।

वो बालिग बच्चे जो शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार हैं, अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

बुजुर्ग माता-पिता: बुजुर्गों को फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, मेंटेनेंस (जिंदगी जीने के लिए खर्च) और प्रोटेक्शन देने के लिए सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 लागू किया गया है। इसके तहत...

अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले बुजुर्ग यानी माता-पिता अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

बेटे के अलावा वे अपनी बालिग बेटी, पोते-पोती, किसी से भी भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

जिन बुजुर्गों के बच्चे नहीं है वो अपने ऐसे किसी रिश्तेदार से भी मांग सकते है जो उनकी संपत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर जो उसके वारिस हैं।

विधवा बहू: भरण-पोषण कानून, 1950 धारा 19 के तहत विधवा बहू अपने ससुर से मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।

अब वापस आते है मौजूदा मामले पर और पति-पत्नी के गुजारा भत्ते को लेकर कुछ और सवालों के जवाब जानते हैं…


सवाल: मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट में कब लगाई जा सकती है?

जवाब: अगर पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों एक-दूसरे के साथ कानूनी तौर पर नहीं रहते हैं तब मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट लगती है।

अगर महिला और बच्चे अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं। मतलब उनके पास रहने को घर नहीं है, खाने-पीने के पैसे नहीं हैं, कपड़े खरीदने का पैसा नहीं है और कोर्ट आने तक का पैसा नहीं है। तो इस तरह के सभी खर्चे मेंटेनेंस में आते हैं।

सवाल: पत्नी अगर कामकाजी है तब उसे मेंटेनेंस देने का क्या नियम है?


जवाब: अगर पत्नी जॉब करती है या शादी से पहले जॉब करती थी। मतलब उसकी क्वालिफिकेशन ऐसी है कि वह नौकरी या बिजनेस कर अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकती है। इस कंडीशन में कोर्ट महिला को मेंटेनेंस नहीं देता है।


सवाल: तो फिर कमाऊ पत्नी कभी भी गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती है?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कामकाजी पत्नी जब अपनी कमाई से खुद का खर्च नहीं उठा पा रही है तो पति से मेंटेनेंस मांग सकती है।

सवाल: अच्छा अगर पति बेरोजगार है क्या तब भी उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा?


जवाब: हां, अगर पति बेरोजगार है और शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत भी तब उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा।

दूसरी ओर पत्नी नाैकरी नहीं करती, न ही उसके पास ऐसी कोई क्वालिफिकेशन है तब भी उसे अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा। भले ही उसे मजदूरी क्यों ना करनी पड़े।

लेकिन अलग-अलग मामलों पर कोर्ट इस बात का फैसला बदल भी सकती है।

सवाल: पति के मेंटेनेंस को लेकर कानून क्या कहता है?


जवाब: हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से मेंटेनेंस की डिमांड कर सकते हैं।

धारा 24- अगर कोर्ट में पति-पत्नी का कोई केस चल रहा है और कार्यवाही के दौरान कोर्ट को ये पता लग जाए कि पति खुद की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है।

यहां तक की उसके पास इस कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं हैं तो कोर्ट पत्नी को आदेश दे सकता है कि वो अपने पति को मेंटेनेंस और कोर्ट केस में आने वाले खर्च के लिए पैसे दे। हालांकि, इसमें पत्नी के पास सोर्स ऑफ इनकम होना जरूरी है।

अगर पति के पास प्रॉपर्टी और कमाने की क्षमता है तो वो पत्नी से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकता है। अगर पति ने कोर्ट में पत्नी से मेंटेनेंस लेने का दावा किया है तो उसे सबूत भी देना होगा कि वो शारीरिक और मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है।

धारा 25- पति को भरण-पोषण मिलने का नियम शामिल है। इस परिस्थिति में कोर्ट पति और पत्नी दोनों की प्रॉपर्टी को ध्यान में रखकर विचार करता है। मान लीजिए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को भरण-पोषण दे।

फिर कुछ समय बाद अगर पति कमाने लायक हो जाता है और काम करने लगता है तो पत्नी के दावे पर कोर्ट अपने फैसले को रद्द या बदल सकती है।

 
लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला पार्टनर भी गुजारा-भत्ता की हकदार


फैमिली मामलों की वकील सुमित्रा गुप्ता कहती हैं, 'लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पार्टनर के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ते के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। महिला को CrPC की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। यहां तक कि लिव-इन-रिलेशन में पैदा होने वाला बच्चा भी हक रखता है।'

चनमुनिया बनाम विरेंद्र कुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट इस तरह का फैसला सुना चुका है।