Bank Rules : लोन न चुकाने पर ऐसे बचे नीलामी से, इन अधिकारों की होनी चाहिए पूरी जानकारी
कई बार आप लोन चुकाने में देरी कर देते हैं या फिर लोन नहीं चूका पाते हैं असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे में बैंक आप को कई मौके देती हैं लेकिन जब वह सारे मौके आप गवा देते हैं तब नीलामी की नौबत तक आ जाती है। ऐसे में नीलामी कारण बैंक के पास आखरी ऑप्शन होता है। लेकिन फिर भी अगर किसी व्यक्ति की प्रॉपर्टी की नीलामी पर बात आ जाये तो उस व्यक्ति को कुछ अधिकार दिए जाते हैं लेकिन आप में से बहुत लोग इन अधिकारों के बारे में नहीं जानते हैं । आईये इन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
News Hindi TV (नई दिल्ली)। आज के समय में अपनी बड़ी बड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर इंसान बैंक से लोन उठाता है लेकिन कुछ लोग आर्थिक दिक्क्तों (economic difficulties) की वजह से लोन चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं क्यूंकि आमतौर पर मकान, फ्लैट या कोई अन्य प्रॉपर्टी की कीमत बहुत ज्यादा होती है, इसलिए लोन का अमाउंट भी बड़ा होता है. इसलिए होम लोन लेते समय आपको गारंटी के तौर पर किसी संपत्ति को गिरवी रखना होता है. अगर लोन लेने वाला व्यक्ति किसी कारण से लोन नहीं चुका पता है तो बैंक उस संपत्ति को नीलाम करके (auctioning the property) रकम को हासिल करता है.
आप में से बहुत से लोग जानते ही होंगे की नीलामी की नौबत (about to be auctioned) एकदम से नहीं आती है इससे पहले भी बैंक आप को कई मौके देता है लेकिन जब ये सरे मौके खो देते हैं तो बैंक का आखिरी विकल्प होता है नीलामी। लेकिन अगर किसी कारण से प्रॉपर्टी नीलाम होने की नौबत आ गई है, तो भी लोन लेने वाले के पास कई तरह के विकल्प होते हैं. यहां जानिए कि प्रॉपर्टी के नीलाम होने की नौबत कब आती है और नीलाम होने की स्थिति में बॉरोअर (borrower) के पास क्या अधिकार होते हैं.
रिमाइंडर (reminder) भी भेजा जाता है
जब भी कोई व्यक्ति लगातार दो महीने तक लोन की EMI चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो बैंक सब से पहले उसे रिमाइंडर (reminder) भेजता है। रिमाइंडर भेजने के बाद भी जब तीसरी किस्त (third installment) जमा नहीं की जाती है तो लोन लेने वाले को कानूनी नोटिस (legal notice) भेजा जाता है. इसके बाद भी जब ईएमआई का भुगतान नहीं किया जाता है तो बैंक संपत्ति को एनपीए घोषित कर देता है और लोन लेने वाले व्यक्ति को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है.
NPA घोषित होने के बाद भी रहता है मौका
ऐसा नहीं कि NPA घोषित होते ही आपकी प्रॉपर्टी को नीलाम कर दिया जाता है. एनपीए की भी तीन कैटेगरी होती है- सबस्टैंडर्ड असेट्स (Substandard Assets), डाउटफुल असेट्स (Doubtful Assets) और लॉस असेट्स (Loss Assets). कोई लोन खाता एक साल तक सबस्टैंडर्ड असेट्स खाते की श्रेणी में रहता है, इसके बाद डाउटफुल असेट्स बनता है और जब लोन वसूली (loan recovery) की उम्मीद नहीं रहती तब उसे ‘लॉस असेट्स’ मान लिया जाता है. लॉस असेट बनने के बाद प्रॉपर्टी को नीलाम किया जाता है. लेकिन नीलामी के मामले में भी बैंक को पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है.
नीलामी के समय मिलेंगे ये अधिकार
असेट की बिक्री (sale of asset) से पहले बैंक या उस वित्तीय संस्थान जहां से आपने लोन लिया है, को असेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस (reserve price), तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है. अगर बॉरोअर (borrower) को लगता है कि असेट का दाम कम रखा गया है तो वो इस नीलामी को चुनौती दे सकता है.
अगर असेट को की नीलामी की नौबत को आप रोक नहीं पाए तो नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखें क्योंकि आपके पास लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का अधिकार होता है. बैंक को वो बची हुई रकम लेनदार को लौटानी ही होती है.