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Flat Buyer Delhi Consumer : दिल्ली उपभोक्ता आयोग ने फ्लैट खरीदार को दी बड़ी राहत, पैसे रिफंड के साथ 3 लाख का मुआवजा भी

Flat Buyer Delhi Consumer : घर खरीदना(Flat Buyer )हर व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा निवेश होता है। घर खरीदने में व्यक्ति के जीवन की सारी जमा पूंजी खर्च हो जाती है। ऐसे में एक छोटी सी गलती भी महंगी साबित हो सकती है। इसलिए कोई भी गड़बड़ी और धोखाधड़ी न हो, प्रॉपर्टी से जुड़ी जानकारी लेना बहुत जरूरी है। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जब बिल्डर या रियल एस्टेट कंपनी को फ्लैट खरीदने के लिए समय पर पैसे दे देते हैं लेकिन फिर भी फ्लैट नहीं मिलता है। हाल ही में दिल्ली उपभोक्ता आयोग ने एक ऐसे ही मामले पर बड़ा फैसला सुनाया है। 
 
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Flat Buyer Delhi Consumer : दिल्ली उपभोक्ता आयोग ने फ्लैट खरीदार को दी बड़ी राहत, पैसे रिफंड के साथ 3 लाख का मुआवजा भी

NEWS HINDI TV, DELHI : दिल्ली उपभोक्ता आयोग से एक शख्स को बड़ी राहत मिली है। आयोग ने रियल एस्टेट कंपनी को कंज्यूमर को 63 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है। कंपनी सात साल बाद भी उसे फ्लैट नहीं दे पाई जिसकी वजह से आयोग ने उसके हक में फैसला सुनाया। 2013 में, वकील मोहम्मद इरशाद के क्लाइंट रमिंदर चिमनी ने गाजियाबाद के पार्श्वनाथ एक्सोटिका में 60 लाख रुपये में 1,920 वर्ग फुट का फ्लैट खरीदा था।

फ्लैट बायर्स समझौते के अनुसार, घर का निर्माण परचेज के छह महीने के अंदर शुरू होना था और तीन साल के पूरा किया जाना था। मार्च 2017 तक बिल्डर को पजेशन (कब्जा) देना था। आयोग ने पाया कि आज तक निर्माण शुरू नहीं हुआ है। ऐसे में दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीएससीडीआरसी) ने कंपनी को शिकायतकर्ता को 60 लाख रुपये का रिफंड और केस की वजह से पहुंची 'मानसिक पीड़ा' के लिए तीन लाख रुपए देने का निर्देश दिया।

कई रियल एस्टेट फर्मों की दलीलों पर भरोसा करते हुए, पार्श्वनाथ ने आयोग को बताया कि शिकायतकर्ता कंज्यूमर नहीं बल्कि एक इनवेस्टर है क्योंकि वह गुड़गांव का स्थायी निवासी है। हालांकि आयोग ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे पता चले कि उपभोक्ता ने मुनाफा कमाने के लिए उस फ्लैट को खरीदा था।

आयोग के सदस्य राजन शर्मा और बिमला कुमारी ने 19 मार्च के आदेश में कहा, 'केवल यह आरोप कि उस फ्लैट की खरीद मुनाफा कमाने के लिए की गई है, यह कंज्यूमर की शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।' आयोग ने यह भी माना कि रियल एस्टेट फर्म शिकायतकर्ता को गुमराह कर रही थी क्योंकि प्रोजेक्ट निर्माण के लिए उसके पास मौजूद लाइसेंस 2012 में ही खत्म हो गया था। आयोग ने कहा, इस केस में बेशक अपोजिट पार्टी पार्श्वनाथ निर्माण शुरू कर देती तो यह अवैध निर्माण होता।