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Grandfather's Property : दादा की संपत्ति में पोते का कितना अधिकार आइए जानते है...

grandfather's property : आज हम आपको अपनी इस खबर में दादा की संपत्ति में पोते का कितना अधिकार होता है ये बताने जा रहे है... तो चलिए जानते है नीचे इस खबर में विस्तार से। 
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Grandfather's Property : दादा की संपत्ति में पोते का कितना अधिकार आइए जानते है...

NEWS HINDI TV, DELHI:  भारत में पूर्वजों की संपत्ति (Property) का बंटवारा एक बहुत जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में देश के लाखों लोग सालों साल मुकदमेबाजी का सामना करते रहते हैं और अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं। इस हिसाब से जरूरी है कि आपको कुछ बातों की जानकारी होनी चाहिए।


अगर बात दादा की संपत्ति पर पोते के हक की करें तो पोते या पोती का दादा को विरासत में मिली संपत्ति पर जन्म के बाद से ही पूरा अधिकार होता है। इसमें पोते/पोती के पिता या दादा की मृत्यु से कोई संबंध नहीं है। कोई पोता-पोती अपने जन्म के साथ ही अपने दादा की संपत्ति में हिस्सेदार हो जाता है।


दादा की पैतृक संपत्ति-


ऐसी संपत्ति जो किसी पिता द्वारा अपने पिता, दादा या परदादा आदि से विरासत में मिली है, पैतृक संपत्ति कही जाती है। पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार जन्म से ही हो जाता है, जो विरासत के अन्य तरीके से अलग होता है। संपत्ति के अधिकार के अन्य तरीके में वारिस का अधिकार प्रॉपर्टी मालिक की मृत्यु होने के बाद खुलता है।


पैतृक संपत्ति में अधिकार-


पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार प्रति भूभाग के आधार पर निर्धारित किया जाता है, प्रति व्यक्ति नहीं। इसलिए हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद में अगली पीढ़ी के लिए उस हिस्से का उप-विभाजन किया जाता है जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा विरासत में मिली है।


दादा की पैतृक संपत्ति-


ऐसी संपत्ति जो किसी पिता द्वारा अपने पिता, दादा या परदादा आदि से विरासत में मिली है, पैतृक संपत्ति कही जाती है। पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार जन्म से ही हो जाता है, जो विरासत के अन्य तरीके से अलग होता है। संपत्ति के अधिकार के अन्य तरीके में वारिस का अधिकार प्रॉपर्टी मालिक की मृत्यु होने के बाद खुलता है।


पैतृक संपत्ति में अधिकार-


पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार प्रति भूभाग के आधार पर निर्धारित किया जाता है, प्रति व्यक्ति नहीं। इसलिए हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद में अगली पीढ़ी के लिए उस हिस्से का उप-विभाजन किया जाता है जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा विरासत में मिली है।

दादा की खुद कमाई गई संपत्ति पर-


एक पोते का अपने दादाजी की खुद कमाई गई संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। यदि वह संपत्ति पोते के पिता को परिवार के विभाजन के समय कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में आवंटित कर दी गयी हो, तब उस पर पोते का अधिकार बनेगा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत हमवारिस के तौर पर उसे इस पर दावा करने का हक नहीं है। दादा इस संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को दे सकता है।


वसीयत नहीं है तब?


यदि दादा बिना किसी वसीयत के मर जाते हैं, तो केवल उनकी पत्नी, पुत्र और बेटी का इस संपत्ति पर अधिकार होगा। मृतक की पत्नी, पुत्र और पुत्रियों द्वारा विरासत में मिली संपत्तियों को उनकी निजी संपत्ति माना जाएगा और उस संपत्ति में किसी अन्य का दावा नहीं होगा।

भारत में पूर्वजों की संपत्ति (Property) का बंटवारा एक बहुत जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में देश के लाखों लोग सालों साल मुकदमेबाजी का सामना करते रहते हैं और अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं। इस हिसाब से जरूरी है कि आपको कुछ बातों की जानकारी होनी चाहिए।


अगर बात दादा की संपत्ति पर पोते के हक की करें तो पोते या पोती का दादा को विरासत में मिली संपत्ति पर जन्म के बाद से ही पूरा अधिकार होता है। इसमें पोते/पोती के पिता या दादा की मृत्यु से कोई संबंध नहीं है। कोई पोता-पोती अपने जन्म के साथ ही अपने दादा की संपत्ति में हिस्सेदार हो जाता है।


दादा की पैतृक संपत्ति-


ऐसी संपत्ति जो किसी पिता द्वारा अपने पिता, दादा या परदादा आदि से विरासत में मिली है, पैतृक संपत्ति कही जाती है। पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार जन्म से ही हो जाता है, जो विरासत के अन्य तरीके से अलग होता है। संपत्ति के अधिकार के अन्य तरीके में वारिस का अधिकार प्रॉपर्टी मालिक की मृत्यु होने के बाद खुलता है।


पैतृक संपत्ति में अधिकार-


पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार प्रति भूभाग के आधार पर निर्धारित किया जाता है, प्रति व्यक्ति नहीं। इसलिए हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद में अगली पीढ़ी के लिए उस हिस्से का उप-विभाजन किया जाता है जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा विरासत में मिली है।


दादा की पैतृक संपत्ति-


ऐसी संपत्ति जो किसी पिता द्वारा अपने पिता, दादा या परदादा आदि से विरासत में मिली है, पैतृक संपत्ति कही जाती है। पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार जन्म से ही हो जाता है, जो विरासत के अन्य तरीके से अलग होता है। संपत्ति के अधिकार के अन्य तरीके में वारिस का अधिकार प्रॉपर्टी मालिक की मृत्यु होने के बाद खुलता है।


पैतृक संपत्ति में अधिकार-


पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार प्रति भूभाग के आधार पर निर्धारित किया जाता है, प्रति व्यक्ति नहीं। इसलिए हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद में अगली पीढ़ी के लिए उस हिस्से का उप-विभाजन किया जाता है जो उनके पूर्ववर्तियों द्वारा विरासत में मिली है।

दादा की खुद कमाई गई संपत्ति पर-


एक पोते का अपने दादाजी की खुद कमाई गई संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। यदि वह संपत्ति पोते के पिता को परिवार के विभाजन के समय कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में आवंटित कर दी गयी हो, तब उस पर पोते का अधिकार बनेगा। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत हमवारिस के तौर पर उसे इस पर दावा करने का हक नहीं है। दादा इस संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को दे सकता है।


वसीयत नहीं है तब?


यदि दादा बिना किसी वसीयत के मर जाते हैं, तो केवल उनकी पत्नी, पुत्र और बेटी का इस संपत्ति पर अधिकार होगा। मृतक की पत्नी, पुत्र और पुत्रियों द्वारा विरासत में मिली संपत्तियों को उनकी निजी संपत्ति माना जाएगा और उस संपत्ति में किसी अन्य का दावा नहीं होगा।