High Court : क्या बेटे की संपत्ति पर मां कर सकती है दावा, हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
Property Rights - संपत्ति से संबंधित अधिकारों और कानूनी नियमों के बारे में जानकारी का अभाव होने के कारण वाद-विवाद के मामले सामने आते रहते हैं। कई मामलों में देखा गया है कि संपत्ति पर मालिकाना हक को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच भी लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं। हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट (High Court Decision) ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह क्लियर कर दिया है कि बेटे की संपत्ति पर मां दावा कर सकती है या नहीं। चलिए जानते हैँ-
NEWS HINDI TV, DELHI: कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक अहम आदेश दिया है कि मां बेटे की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार है. याचिकाकर्ता एक मां ने निचली अदालत के फैसले को चुनाैती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सत्र न्यायाधीश ने मृत बेटे की संपत्ति में मां के अधिकार को वंचित कर दिया था.
उच्च न्यायालय (High Court) की एकल-न्यायाधीश पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एचपी संदेश की अध्यक्षता में सुनवाई हुई. जज ने कहा कि मृत बेटे की विरासती संपत्ति में मां भी प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी बनती है.
मामले की सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों के वकील ने सत्र न्यायालय के फैसले का बचाव किया. जब अपीलकर्ता सुशीलम्मा को विरासत में मिली संपत्ति में हिस्सा आवंटित किया गया, तब तक उनके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी. इसलिए सत्र न्यायालय के आदेश को संशोधित करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्होंने दलील दी कि सत्र न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा जाना चाहिए.
हालांकि, हाईकोर्ट (High Court) ने प्रतिवादियों की दलीलों को खारिज कर दिया. वहीं, सुशीलम्मा को याचिका में पक्षकार बना दिया और उन्हें अपने बेटे संतोष की प्रथम श्रेणी उत्तराधिकारी बताया. संतोष के परिवार में उनकी माँ, पत्नी और बेटा है. सुशीलम्मा एक हिंदू अविभाजित परिवार में प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी हैं. मूल अपीलकर्ता सुशीलम्मा, संतोष की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार हैं. इसलिए पीठ ने माना कि सत्र न्यायालय की कार्रवाई त्रुटिपूर्ण थी.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार भले ही याचिकाकर्ता का पति हो वह मृत बेटे की संपत्ति की पहली उत्तराधिकारी है. ट्रायल कोर्ट ने इस पर विचार नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि मां भी संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार है. सुप्रीम कोर्ट का पहले का आदेश: हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम-2005 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था कि बेटियों को भी पिता की संपत्ति में समान अधिकार है.
विवाहित और अविवाहित होने की स्थिति में
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, अगर पुरुष अविवाहित है तो उसकी संपत्ति में पहली वारिस, उसकी मां और दूसरे वारिस, उसके पिता को हस्तांतरित की जाएगी. अगर मां जीवित नहीं है तो संपत्ति पिता और उसके सह-वारिसों को हस्तांतरित कर दी जाएगी. यदि मृतक एक हिंदू विवाहित पुरुष है, और बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी पत्नी को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार संपत्ति का अधिकार प्राप्त होगा. ऐसे मामले में, उसकी पत्नी को श्रेणी 1 वारिस माना जाएगा. वह संपत्ति को अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के साथ समान रूप से साझा करेगी.
जानिये मां की संपत्ति पर किसका कितना अधिकार होता है-
इसी तरह एक अधिकार मां की संपत्ति को लेकर भी होता है, क्या आप जानते हैं कि मां की संपत्ति पर किसका हक होता है?
पिता की ही तरह मां की कमाई गई या अर्जित की गई संपत्ति का भी वारिस होता है. हालांकि संपत्ति किसके नाम करनी है, ये अधिकार मां का ही होता है।
जिंदा रहते हुए बेटा या बेटी मां की संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. मां चाहे तो वसीयत के जरिए अपनी संपत्ति किसी के नाम भी कर सकती है।
अगर बिना वसीयत लिखे मां की मौत हो जाती है तो ऐसे में बेटा या बेटी को संपत्ति मिल सकती है. यही प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी होंगे।
शादीशुदा बेटी का भी अपनी मां की संपत्ति पर उतना ही अधिकार होता है, जितना बेटे का होता है. बेटी अपना हिस्सा मांग सकती है।
कोई अविवाहित महिला जिसके पास संपत्ति है, बिना वसीयत लिखे मर जाती है तो ऐसे में पिता को संपत्ति का अधिकार होता है. पिता के नहीं होने पर भाई-बहन दावेदार हो सकते हैं।