High Court Decision : दहेज के मामले में गिरफ्तारी को लेकर हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, आप भी जान लें
High Court Decision : इलाहाबाद हाईकोर्ट में आए एक दहेज के मामले में कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा कि दो माह तक पारिवारिक विवाद को सुलझाने का भी प्रयास किया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो...चलिए नीचे खबर में जानते हैं हाईकोर्ट के इस फैसले को विस्तार से.
NEWS HINDI TV, DELHI : इलाहाबाद हाईकोर्ट( Allahabad High Court ) ने दहेज उत्पीड़न की धारा 498 ए के दुरुपयोग को देखते हुए महत्वपूर्ण आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दर्ज मुकदमे में दो माह तक कोई भी गिरफ्तारी नहीं कि जाए। इस दौरान परिवार कल्याण समिति मामले पर विचार कर अपनी रिपोर्ट दे। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट( High Court Decision ) ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज होने पर दो महीने तक पुलिस कोई भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी न करे। हाई कोर्ट ने कहा कि दो माह के कूलिंग पीरियड( cooling period ) के दौरान पारिवारिक विवाद को सुलझाने का भी प्रयास किया जाय। केस दर्ज होते ही परिवार कल्याण समिति को भेजा जाए। कमेटी विस्तृत रिपोर्ट बनाए और उसे पुलिस व मजिस्ट्रेट( Magistrate ) को सौंपे। कोर्ट ने कमेटी को राहत देते हुए कहा कि मुकदमे में कमेटी के किसी सदस्य को गवाह के तौर पर नहीं बुलाया जाएगा।
लिव इन रिलेशनशिप को मिल रहा बढ़ावा-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दहेज उत्पीड़न की धारा 498 ए का दुरुपयोग वैवाहिक संस्था( matrimonial institution ) को प्रभावित कर रही है और लिव इन रिलेशनशिप ( relationship )परंपरागत विवाह का स्थान लेती जा रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने मुकेश बंसल की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि लिव इन रिलेशनशिप( live-in relationship ) चुपचाप हमारी सामाजिक सांस्कृतिक मान्यताओं परंपरागत विवाह का स्थान लेती जा रही है। यह जमीनी हकीकत है जिसे हमें स्वीकार करना पड़ेगा।
कोर्ट ने कहा कि जोड़े बिना विवाह किए एक साथ रहना व यौन संबंध बनाए रखने पर राजी होते हैं। यह अविवाहित लोगों की एक छत के नीचे रोमांटिक यौन संबंध बनाए रखने सहमति पर होता है। ऐसा वैधानिक जवाबदेही से बचने के लिए किया जा रहा है।
बार एसोसिएशन से न्यायिक कामकाज में बाधा की अपेक्षा नहीं : हाईकोर्ट-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन मुजफ्फनगर के न्यायिक कार्य से विरत रहने पर नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन( bar Association ) पंजीकृत सोसायटी से अधिक नहीं है। वह अपने सदस्यों के लिए कामकाज करती है। उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह अदालतों के न्यायिक कामकाज में बाधा उत्पन्न करे। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने रजनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।