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live in Relationship : जानें High Court का बड़ा फैसला, क्या लिव इन में रह रहे बच्चों को माता-पिता करेगे मना

High Court  : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि जब कोई बच्चा अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में होता है तो माता-पिता हस्तक्षेप नहीं कर सकते, भले ही साथी का धर्म अलग हो। इसी लिए सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप रिश्ते में रहने वाले जोड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है
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live in Relationship : जानें High Court का बड़ा फैसला, क्या लिव इन में रह रहे बच्चों को माता-पिता करेगे मना

NEWS HINDI TV, DELHI : इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने फैसला सुनाया कि अगर बच्चे किसी पार्टनर (partner) के साथ अपनी मर्जी से  लिव-इन रिलेशनशिप (relationship) में रह रहें हैं तो उसमें माता-पिता हस्तक्षेप नहीं कर सकते भले ही पार्टनर का धर्म  ही अलग क्यों न हो। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप (live-in relationship) में साथ रह रहे अंतरधार्मिक जोड़े को धमकी मिलने पर पुलिस को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है।

 

 


मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और शीर्ष न्यायालय द्वारा अपने निर्णयों में निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, इस अदलात की राय है कि याचिकाकर्ता एक साथ रहने के लिए स्वतंत्र हैं और उनके माता-पिता या किसी अन्य सहित किसी भी व्यक्ति को उनके शांतिपूर्ण लिव-इन-रिलेशनशिप (relationship) में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाएगी। यदि याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जीवन में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है, तो याचिकाकर्ता इस आदेश की एक प्रति के साथ संबंधित पुलिस अधीक्षक से संपर्क कर सकते हैं,जो याचिकाकर्ताओं को तत्काल सुरक्षा प्रदान करेगा।”


मामले में एक याचिकाकर्ता, जो बालिग है, ने इस आधार पर सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि उसकी की मां और अन्य रिश्तेदार उसके पार्टनर संग उसके रिश्ते के खिलाफ हैं और याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जिंदगी जीने में व्यवधान डाल रहे हैं और परेशान कर रहे हैं। चूंकि याचिकाकर्ताओं को मां ने धमकी दी थी, इसलिए वे अपने परिवार के सदस्यों द्वारा ऑनर किलिंग को लेकर आशंकित हैं। 


अदालत (court) का दरवाजा खटखटाने से पहले याचिकाकर्ताओं ने गौतमबुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त से सुरक्षा की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। याचिकाकर्ताओं ने अपनी अर्जी में कहा है कि वे दोनों निकट भविष्य में शादी करने का इरादा रखते हैं। चूंकि वे शांति से रह रहे थे, इसलिए उन्होंने रिश्तेदारों के खिलाफ कोई एफआईआर (FIR) दर्ज नहीं कराई थी।

इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि किरण रावत (सुप्रा) के मामले में परिस्थितियाँ अलग थीं और उसमें यह सामान्य नियम नहीं माना गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप (relationship) में रहने वाले जोड़े सुरक्षा के हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों पर भरोसा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, जो वयस्क हो चुके हैं, लिव-इन रिलेशनशिप में शांतिपूर्वक एक साथ रहने के लिए स्वतंत्र हैं।