बिना बताए किसी की कॉल रिकॉर्ड करना आपको दे सकता है बड़ी मुसीबत, जानिए High Court का फैसला
News Hindi TV, Delhi : मोबाइल फोन पर किसी से बातचीत के दौरान दूसरे पक्ष की मर्जी के बगैर फोन रिकॉर्डिंग( phone call recording ) करना भारी पड़ सकता है। अगर दूसरे पक्ष ने इसके खिलाफ शिकायत कर दी तो सजा भी हो सकती है। ऐसा करना निजता के अधिकार ( rights of privacy )का उल्लंघन और आईटी एक्ट की धारा 72 के तहत अपराध है। अब निचली अदालतें भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार नहीं कर सकती, जो दूसरे पक्ष की मर्जी के बगैर हासिल किए गए हो।
फोन टैपिंग के चर्चित केस नीरा राडिया पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court ) के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट( Chhattisgarh High Court ) ने पति-पत्नी विवाद के बीच मोबाइल रिकॉर्डिंग के मामले पर फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि मामला चाहे निजी संबंधों का ही क्यों ना हो, अदालते ऐसा साक्ष्य स्वीकार नहीं कर सकती हैं। हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बिना मंजूरी मोबाइल फोन पर बातचीत की रिकार्डिंग( Call recording ) करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
ऐसा करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन-
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट( family court ) के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें साक्ष्य के रूप में अमुक रिकार्डिंग का उपयोग करने दी गई थी। हाईकोर्ट ने आशंका जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता पत्नी की बातचीत को उनकी जानकारी के बगैर पति ने चुपचाप टैप कर लिया। इस तरह की कारगुजारी संवैधानिक अधिकारों( constitutional rights ) का सीधा उल्लंघन है। यह मामला छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले का है।
जानिए क्या था पूरा मामला ?
पत्नी ने फैमिली कोर्ट में पति से गुजारा भत्ता दिलाने के लिए आवेदन किया था। पति ने फैमिली कोर्ट में पत्नी की बातचीत की रिकार्डिंग करने और उसे कोर्ट में साक्ष्य के रूप में पेश करने की मंजूरी मांगी थी। इस दौरान पति ने पत्नी के चरित्र पर आरोप लगाया था। इस मांग को फैमिली कोर्ट ने स्वीकार कर रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के तौर पर लिया। फैमिली कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके आदेश को रद्द करने की मांग की।
हाईकोर्ट ने क्या दिया आदेश ?
जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के सिंगल बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए आदेश में कहा कि ऐसा लगता है कि पति ने याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना बातचीत रिकार्ड कर ली है, जो उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त याचिकाकर्ता के अधिकार का भी उल्लंघन है।
निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 द्वारा नागरिकों को दिया गया जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 311 के तहत पति के आवेदन को मंजूरी देकर भूल की है। याद रहे कि पति ने फैमिली कोर्ट में पत्नी से दोबारा पूछताछ की मांग की थी और उसका आधार मोबाइल पर बातचीत की रिकॉर्डिंग ही थी।
क्या है आईटी एक्ट ?
गौरतलब है कि अगर किसी की मर्जी के बगैर मोबाइल या फोन रिकॉर्डिंग की जाती है तो वह आईटी एक्ट-2000 की धारा 72 का उल्लंघन है। इस एक्ट के तहत किसी इलेक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक, रजिस्टर, पत्राचार, सूचना, दस्तावेज या अन्य सामग्री से संबद्ध व्यक्ति की मंजूरी के बिना जानकारी हासिल कर ली है और उसे उसकी मंजूरी या जानकारी के बिना सार्वजनिक करता है तो धारा-72 के उल्लंघ के तहत दो साल की सजा और एक लाख जुर्माने का प्रविधान है। सजा व जुर्माना साथ भी भुगतना पड़ सकता है।