Supreme court : काफी समय तक लिव इन में रहने वाले कपल के बच्चे को ancestral property में मिलेगा हिस्सा
Supreme court news : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक केस पर सुनवाई के दौरान बताया है की अगर कोई कपल लम्बे समय तक लिव इन में रहता है तो उसे विवाहित जैसे माना जायेगा और उनके बच्चे को ancestral property में अधिकार मिलेगा

NEWS HINDI TV, DELHI : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि यदि कोई पुरुष और महिला लंबे समय तक साथ रहते हैं तो कानून के मुताबिक, इसे विवाह जैसा ही माना जाएगा और उनके बेटे को पैतृक संपत्तियों में हिस्सेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के सबूत के अभाव में एक साथ रहने वाले पुरुष और महिला का 'नाजायज' बेटा पैतृक संपत्तियों में हिस्सा पाने का हकदार नहीं है.
SC ने निचली अदालत के फैसले को बहाल किया :
जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा, ''यह साफ है कि अगर एक पुरुष और एक महिला पति और पत्नी के रूप में लंबे समय तक एक साथ रहते हैं, तो इसे विवाह जैसा ही माना जायेगा. इस तरह का अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है. ''
कोर्ट ने कहा, ''यह अच्छी तरह से तय है कि अगर एक पुरुष और एक महिला पति और पत्नी के तौर पर लंबे समय तक एक साथ रहते हैं, तो विवाह के पक्ष में अनुमान लगाया जाएगा.'' सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला केरल हाईकोर्ट के 2009 के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया.
केरल हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
केरल हाईकोर्ट नेएक पुरुष और महिला के बीच लंबे समय तक चले रिश्ते के बाद पैदा हुए एक बच्चे को पैतृक संपत्तियों में हिस्सा देने के निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया था.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता के माता-पिता लंबे समय तक साथ-साथ रहे. दस्तावेजों से सिर्फ यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता दोनों का पुत्र है, लेकिन वह वैध पुत्र नहीं है, इसलिए हाईकोर्ट ने संपत्ति बंटवारे से इंकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए कहा कि जब महिला और पुरुष ने ये सिद्ध कर दिया कि वे पति और पत्नी की तरह रहे हैं, तो कानून यह मान लेगा कि वे वैध विवाह के परिणामस्वरूप एक साथ रह रहे थे.
साथ ही कोर्ट ने देश भर के ट्रायल कोर्टों से कहा है कि वे स्वत: संज्ञान लेते हुए फाइनल डिक्री पारित करने की प्रक्रिया में तत्परता दिखाएं. कोर्ट ने ये सीपीसी के आदेश 20 नियम 18 के तहत ऐसा करने के लिए कहा है.