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supreme court decision: लोन की किश्त न भरने पर supreme courtने सुनाया फैसला, बताए किस के क्या हैं अधिकार?

क्या आप जानते हैं जब तक आप अपनी कार की किश्त नहीं चूका देते तब तक आपकी कार का मालिक फिनांसर ही रहेगी ? जी हाँ यह फैसला सबसे बड़ी अदालत की तरफ से किया गया था। आईये इस के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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लोन की किश्त न भरने पर supreme court ने सुनाया फैसला


NEWS HINDI TV, DELHI सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि अगर लोन की किस्तों में डिफॉल्ट (default) होने पर फाइनेंसर वाहन पर कब्जा कर लेता है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।

 


 

क्या है पूरा मामला?

 

 


कोर्ट का फैसला उस केस में आया है, जहां अम्बेडकर नगर (Ambedkar Nagar) के रहने वाले राजेश तिवारी ने साल 2003 में महिंद्रा मार्शल (Mahindra Marshal) गाड़ी को फाइनेंस पर खरीदा था। तिवारी ने इस कार के लिए एक लाख रुपये का डाउनपेमेंट किया था और बाकी की शेष राशि को लोन पर कर दिया। 

 

इस गाड़ी पर उन्हें हर महीने 12,531 रुपये का किस्त भरना था। ग्राहक ने शुरुआत के सात महीनों तक गाड़ी की किस्त भरी लेकिन इसके बार की किस्त को वो भर नहीं पाए। पांच महीने तक फाइनेंसिंग कंपनी (Financing Company) ने इंतजार किया, लेकिन फिर भी जब तिवारी किस्त नहीं भर पाए तब कंपनी ने उनकी कार उठवा ली।


उपभोक्ता कोर्ट में दर्ज हुआ केस


किस्त न भरने पर फाइनेंसिंग कंपनी (Financing Company) ने ग्राहक की गाड़ी उठवा ली और फिर उसे बेच दिया। ग्राहक को जब इसकी जानकारी मिली तब उसने जिला उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज कर दिया।


उपभोक्ता कोर्ट ने फाइनेंसर पर लगाया था जुर्माना


ग्राहक के अपील के बाद उपभोक्ता कोर्ट ने फाइनेंसर को दो लाख 23 हजार रुपये का हर्जाना अदा करने का आदेश दिया था। कोर्ट का कहना था कि फाइनेंसर ने बिना नोटिस दिए ग्राहक की गाड़ी उठवा ली। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा किफाइनेंसर ने ग्राहक को किस्त भरने के लिए पूरा मौका नहीं दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंसर की अपील को स्वीकार करते हुए उस पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की तरफ से लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गाड़ी को खरीदने वाला डिफॉल्टर था, जिसने खुद माना कि वह सात किस्त ही चुका पाया। कोर्ट ने कहा कि फाइनेंसर ने 12 महीने के बाद गाड़ी को कब्जे में लिया। हालांकि, एंग्रीमेंट में नोटिस देने का प्रावधान था, जिसको तोड़ने पर फाइनेंसर को 15000 रुपये का जुर्माना भरना होगा।