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इन 10 कारणो की वजह से आता है इनकम टैक्स का नोटिस

Income Tax Department - इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस मिलने पर कई लोग घबरा जाते जाते हैं। दरअसल आपको टैक्स नोटिस कई कारणों से मिल सकते हैं। आइए नीचे खबर में जानते है वो दस कारण जिनकी वजह से आता है इनकम टैक्स का नोटिस...
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इन 10 कारणो की वजह से आता है इनकम टैक्स का नोटिस

NEWS TV HINDI, DELHI: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस(income tax department notice) मिलने पर कई लोगों के हाथ-पांव फूल जाते हैं. टैक्स नोटिस कई कारणों से मिल सकते हैं. इनमें समय से इनकम टैक्स रिटर्न फाइल न करना, कैलकुलेशन में गलती, सही इनकम की जानकारी नहीं देना इत्यादि शामिल हैं.


AMRG & Associates में सीनियर पार्टनर रजत मोहन ने कहा, "करदाताओं को अमूमन सेक्शन 139(9), 143(1), 143(2), 143(3), 245, 144, 147 और 148 के तहत नोटिस जारी किए जाते हैं."

यहां हम 10 सामान्य कारण बता रहे हैं जिनके चलते करदाताओं को आयकर विभाग टैक्स नोटिस जारी कर सकता है.


1. आयकर रिटर्न फाइल करने में देरी-


समय से रिटर्न फाइल न करने पर आपको इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से रिमाइंडर नोटिस आता है. यह उस एसेसमेंट इयर के अंत से पहले आता है जिसके लिए रिटर्न बकाया है. समय से रिटर्न फाइल नहीं करने पर आपको लेट फाइलिंग फीस देनी होगी. समयसीमा निकल जाने पर 31 दिसंबर, 2019 तक बिलेटेड रिटर्न भरा जा सकता है. इसके लिए 5,000 रुपये की पेनाल्टी देनी होगी. एक जनवरी, 2020 के बाद आईटीआर फाइल करने पर यह पेनाल्टी बढ़कर 10,000 रुपये हो जाती है.
क्या है बचाव का तरीका : समयसीमा खत्म होने से पहले आईटीआर फाइल(ITR file) कर देना चाहिए.

2. शेयरों से एलटीसीजी की गलत रिपोर्टिंग-


लिस्टेड इक्विटी और इक्विटी म्यूचुअल फंड से हुए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस (LTCG) को आईटीआर फाइल करते समय बताना पड़ता है. एक लाख रुपये तक के एलटीसीजी पर टैक्स नहीं है. इससे अधिक पर 10 फीसदी की दर से टैक्स लगता है. वित्त वर्ष 2018-19 से इक्विटी पर एलटीसीजी को बताना थोड़ा जटिल हो सकता है.


डेलॉयट इंडिया में पार्टनर सरस्वती कस्तूरीरंगन ने कहा कि टैक्स स्क्रूटनी के दौरान अधिक मूल्य के लेनदेन की समीक्षा से कर अधिकारियों को नहीं बताए गए एलटीसीजी के बारे में पता लग जाता है. लिहाजा, जरूरी है कि सही कैलकुलेशन किया जाए. कैलकुशन में गलती के चलते डिमांड नोटिस आ सकता है.

क्या है बचने का तरीका : ब्रोकर या सीधे म्यूचुअल फंड हाउस(mutual fund house) से कैपिटल गेंस का स्टेटमेंट हासिल कर लें. फॉर्म में इसके अनुसार ही विवरण भरें. अपने अकाउंट स्टेटमेंट से एलटीसीजी कैलकुलेशन के विवरण क्रॉस चेक कर लें.


3. फॉर्म 26एएस के साथ टीडीएस क्लेम का मेल नहीं खाना-


आईटीआर भरते समय देख लें कि फॉर्म 26एएस और फॉर्म 16 में टीडीएस के विवरण एक जैसे हों. इनमें कई कारणों से अंतर दिख सकता है. टीडीएस में मेल न खाने का नोटिस सेक्शन 43(1) के तहत भेजा जाता है.

क्या है बचाव का तरीका : ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर और इंडिया मोबिलिटी लीडर अमरपाल एस चड्ढा ने कहा कि रिटर्न भरने से पहले एहतियात बरतनी चाहिए. फॉर्म 26एएस में रिपोर्ट किए गए टीडीएस को देख लेना चाहिए. सुनिश्चित कर लें कि क्या टीडीएस काटने वालों ने इसकी सही जानकारी दी है. इसके बाद ही रिटर्न फाइल करें.

4. सही इनकम का खुलासा नहीं करना-


बैंक, कंपनी, किरायेदार, म्यूचुअल फंड एक्सचेंज इत्यादि जैसे अलग-अलग स्रोतों से अधिकारी इनकम के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं. इसे आईटीआर में न दिखाने पर इनकम टैक्स का नोटिस मिल सकता है. इनकम को छुपाने के लिए सेक्शन 139 (9) या 143(1) के तहत नोटिस भेजा जाता है.

क्या है बचाव का तरीका : सभी फाइनेंशियल स्टेटमेंट को जुटाना चाहिए. इनकम के स्रोत की लिस्ट बना लेनी चाहिए. फिर आईटीआर फाइल करना चाहिए. चड्ढा ने कहा कि करदाता इनकम में किसी स्रोत से आय का ब्योरा देना भूल जाते हैं तो वही अंतर दिखने लगता है. इसके कारण नोटिस आ जाता है.

5. जीवनसाथी के नाम पर किए गए निवेश को नहीं बताना-


कई बार लोग जीवनसाथी के नाम पर निवेश करते हैं. लेकिन, अपने रिटर्न में इस तरह के निवेश से हुई इनकम को दिखाना भूल जाते हैं. यह टैक्स योग्य इनकम होती है. इस पर टैक्स देना पड़ता है.

क्या है बचाव का तरीका : रिटर्न फाइल करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि जीवनसाथी के नाम पर किसी एसेट से कितनी इनकम हो रही है. इस पर कितना टैक्स देने की जरूरत है.

6. गलत रिटर्न फाइल करना-


सही फॉर्म में रिटर्न फाइल न करने से भी यह अमान्य माना जाता है. यह भी नोटिस मिलने की वजह बन सकता है. इस मामले में सेक्शन 139(9) के तहत गलत रिटर्न भरने का नोटिस भेजा जाता है. गलत आईटीआर फाइल करने पर आपको संशोधित आईटीआर में रिटर्न फाइल करने की जरूरत होती है.

क्या है बचाव का तरीका : जांच लें कि जिस फॉर्म में आप रिटर्न भर रहे हैं, वह सही है.

7. बहुत अधिक मूल्य का ट्रांजेक्शन-


बहुत अधिक मूल्य का ट्रांजेक्शन करने पर भी आपको नोटिस मिल सकता है. किसी वित्त वर्ष में बहुत अधिक मूल्य का ट्रांजेक्शन किया है, लेकिन रिटर्न नहीं भरा है तो यह विभाग की नजर में आ सकता है. विभाग आपसे फंडों के स्रोत के बारे में पूछ सकता है.

क्या है बचाव का तरीका : करदाता को इनकम के स्रोत को बताते हुए संतोषजनक उत्तर देना चाहिए. अगर विभाग आपके जवाब से संतुष्ट हो जाता है तो मामला वहीं बंद हो जाता है. ऐसा नहीं करने पर विभाग उचित कार्रवाई करता है.

8. स्क्रूटनी के लिए आपका रिटर्न चुने जाने पर-


आप कभी भी इनकम टैक्स विभाग की नजरों में आ सकते हैं. टैक्स कम्प्लायंस के लिए विभाग रैंडम तरीके से रिटर्न की स्क्रूटनी करता है. इस तरह के मामलों में 143(2) के तहत नोटिस भेजी जाती है.

क्या है बचाव का तरीका : सभी तरह की कर योग्य आमदनी को जरूर रिपोर्ट करें. दस्तावेजों और सबूतों को अपने पास सहेज कर रखें.

9. टैक्स बकाया होना-


अगर चुकाए गए टैक्स पर रिफंड क्लेम किया है, लेकिन पिछला कुछ टैक्स बकाया है तो आकलन अधिकारी नोटिस भेज सकता है. इस तरह के नोटिस सेक्शन 245 के तहत भेजे जाते हैं.

क्या है बचाव का तरीका : सुनिश्चित कर लें कि आप ने समय से सभी बकाया टैक्स को अदा कर दिया हो.

10. पिछले सालों में टैक्स छुपाना-


आयकर विभाग के पास पहले फाइल किए गए आईटी रिटर्न का दोबारा आकलन करने का अधिकार है. इस तरह का टैक्स नोटिस अमूमन सेक्शन 147 के तहत भेजा जाता है.

क्या है बचाव का तरीका : आपको किसी बात को छुपाए बगैर अच्छी भावना के साथ आईटीआर फाइल करना चाहिए.