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Success Story : चपरासी बनकर की नौकरी, फिर बना डाली अरबों की कंपनी

Success Story Fevicol :इतिहास रचने वाले तो खुद पर भरोसा रखकर परेशानियों से लड़कर शिखर पर पहुंच जाते हैं। ये शख्स भी उन लोगों में से है, जिन्होंने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया। न तो उनके पास पैसा था और न ही कारोबार का अनुभव। अगर कुछ था तो सिर्फ कुछ करने का जज्बा। आज हम आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जो नौकरी के लिए दर-दर भटके थे। लेकिन उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू किया और वो आज करीब 300 करोड़ रूपये के मालिक हैं। 

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Success Story : चपरासी बनकर की नौकरी, फिर बना डाली अरबों की कंपनी

NEWS HINDI TV, DELHI: मूवी, सीरियल या वीडिया के बीच में अगर विज्ञापन आ जाता है तो लोगों को बहुत बोर लगता है. विज्ञापन ऐसी चीज है, जिसे देखना लोग पसंद नहीं करते हैं। लेकिन कुछ विज्ञापन ऐसे हैं जिन्हें हम शर्त के साथ कह सकते हैं इन्हें देखकर आप कभी बोर नहीं हुए होंगे। किसी भी ब्रांड को आगे बढ़ाने में विज्ञापन की भी काफी अहम भूमिका होती है।


विज्ञापन और काम अगर दोनों ही चोखा होता है तो फिर समझों कंपनी की निकल पड़ी। आज हम एक ऐसे ही ब्रांड की बात करने जा रहे हैं, जिसका एड और काम दोनों ने अपने आप को कुछ ऐसे जोड़ा कि देश के हर घर में उसका इस्तेमाल होने लगा। आज इस कंपनी का रेवेन्यू 3000 करोड़ रुपये है।

 

 

हम बात कर रहे हैं फेविकोल (Fevicol) की. ‘फेविकोल का मजबूत जोड़ है, टूटेगा नहीं….’ अपनी इस प्रचलित टैगलाइन के अनुरूप ही कंपनी ने काम किया. आपको हालिया मिश्राइन का सोफा वाला विज्ञापन याद होगा. इन विज्ञापन से इतर फेविकोल एक ऐसा ब्रॉन्ड है, जिसका इस्तेमाल लगभग हर घर में किया जाता है. भारत में ग्लू बनाने वाली इस कंपनी का इतिहास (Company History) इन विज्ञापनों से भी कही अधिक रोमांचकारी और मोटिवेट करने वाला है।

फेविकोल के मालिक का कुछ ऐसा शुरू हुआ सफर


बलवंत पारेख (Balwant Parekh) फेविकोल कंपनी के संस्थापक हैं. शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने फेविकोल का नाम ना सुना हो. बलवंत पारेख कभी चपरासी का काम किया करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के दम से पूरा खेल ही पलट दिया. एक समय में उन्होंने एक ऐसा बिजनेस किया, जिससे वो देश ही क्या दुनिया में मशहूर हो गए।


फेविकोल के आने की वजह से कोलेजन और जानवरों की चर्बी वाला गोंद रिप्लेस करने के नाम से लांच किया गया. इस समय फेविकोल की मार्केटिंग दुनिया के 54 देशों में होती है और इसका इस्तेमाल कारपेंटर, इंजीनियर, शिल्पी, उद्योग जगत से लेकर आम लोग भी करते हैं।

कभी करते थे प्यून का काम


साल 1925 में गुजरात के भावनगर जिले के महुआ में जन्में बलवंत राय ने वकालत में डिग्री थी, लेकिन कभी प्रैक्टिस नहीं की. वह मुंबई के एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगे. इसके बाद लकड़ी के एक दफ्तर में उन्होंने प्यून का काम किया. इस दौरान वह वह अपनी पत्नी के साथ ऑफिस के गोदाम में रहा करते थे।


यहां उन्होंने लकड़ी के काम को काफी गौर से देखा. बलवंत राय को अपना कारोबार करना था, इसलिए उन्होंने मोहन नाम के निवेशक की मदद से साइकिल, एरेका नट, पेपर डाई आदि को पश्चिमी देशों से भारत इंपोर्ट करने का बिजनेस शुरू किया. बलवंत राय ने जर्मनी की एक कंपनी होचेस्ट को भारत में रिप्रजेंट करने वाली फेडको के साथ 50 फ़ीसदी की पार्टनरशिप की।


 

चर्बी वाले गोंद से किया रिप्लेस


जर्मन कंपनी के एमडी के बुलावे पर पारेख 1 महीने के लिए जर्मनी गए. कंपनी के एमडी की मृत्यु के बाद अपने भाई के साथ मिलकर मुंबई में Parekh Dyechem Industries के नाम से एक कंपनी शुरू की. इसके बाद फेडको में और ज्यादा हिस्सा खरीद कर एक ग्लू बनाया जिसका नाम था फेविकोल।


फेविकोल को भारत में साल 1959 में लांच किया गया. 1959 में ही कंपनी का नाम बदल कर Pidilite Industries कर दिया गया. लकड़ी का काम करने वाले कारीगरों के लिए फेविकोल इजी टू यूज ग्लू के तौर पर विकसित किया गया था. फेविकोल के आने की वजह से कोलेजन और जानवरों की चर्बी वाला गोंद रिप्लेस करने के नाम से लांच किया गया. इस समय फेविकोल की मार्केटिंग दुनिया के 54 देशों में होती है और इसका इस्तेमाल कारपेंटर, इंजीनियर, शिल्पी, उद्योग जगत से लेकर आम लोग भी करते हैं.