Animal Husbandry इस घास से बढ़ता है पशुओं का दूध, जानिए और क्या हैं फायदे
नई दल्ली : भारत में कृषि एक प्रमुख व्यवसाय है और पशुपालन भी इसी से जुड़ा हुआ है. हम यह कह सकते हैं कि animal husbandry and agriculture भारत में साथ-साथ चलते हैं. आज जब Technique का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है तो ऐसे में खेती भी मुनाफे का सौदा बन गई है और इसके साथ यदि पशुपालन किया जाए तो यह मुनाफे का सौदा हो जाता है.
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इसलिए सरकार भी लगातार किसानों को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित कर रही है. सिर्फ ग्रामीण इलाकों (Rural areas) में ही नहीं, कस्बों और शहरों में भी पशुपालन को व्यवसाय के रूप में प्राथमिकता दी जाने लगी है. दुधारू पशुओं को पालकर हमारे किसान आज अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
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इसके बावजूद पशुपालकों (pastoralists) के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती यह है कि वे किस तरह से अपने दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ाएं. वे इसके लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं. आज हम आपको ऐसी घास के बारे में बता रहे हैं जिसके जरिए किसान भाई अपने दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी कर सकते हैं.
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बरसीम घास (Berseem grass)
यह पशुओं के लिए बहुत अच्छी घास मानी जाती है. इसमें calcium and phosphorus की मात्रा बहुतायत में पाई जाती है. यह ना सिर्फ पशुओं का पेट भरती है बल्कि यह उनका हाजमा भी सही रखती है जिसकी वजह से उनकी दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है.
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जिरका घास ( Jirka grass)
जिरका घास भी पशुओं के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. इसके साथ एक सबसे बढ़िया बात यह है कि इस घास को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है. यह कम पानी वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. वैसे तो जहां आमतौर पर बरसात कम होती है और जल की भी कमी होती है, वहां पशुपालन मुख्य व्यवसाय है.
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उन क्षेत्रों के लिए तो यह खास वरदान की तरह है. राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके इस घास के लिए उपयुक्त हैं. घास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर का महीना है. जिन भी पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ानी हो, उन पशुओं के लिए यह घास बहुत उपयोगी साबित हो सकती है.
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नेपियर घास (Napier grass)
यह घास दिखने में गन्ने के जैसी होती है और पशुओं के लिए बहुत उत्तम आहार मानी जाती है. सबसे खास बात यह है कि यह घास बहुत ही कम समय में उग जाती है. यानी लगभग डेढ़ से 2 महीने में तैयार हो जाती है. इसके सेवन से पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ती है और उनका स्वास्थ्य भी बेहतर होता है.