Supreme Court ने सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के मामले में सुनाया बड़ा फैसला
NEWS HINDI TV, DELHI : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रिश्वतखोरी सहित आपराधिक मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए अनिवार्य चार महीने का वैधानिक प्रावधान करते हुए कहा कि भ्रष्ट व्यक्ति पर मुकदमा चलाने में देरी से 'दंड से मुक्ति की संस्कृति' पैदा होती है।
शीर्ष अदालत ने एक अहम फैसले में कहा कि इस देरी के लिए सक्षम प्राधिकारी जिम्मेदार होगा. उनके खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा सीवीसी अधिनियम के तहत प्रशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिए।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है:
हालांकि, जस्टिस बी आर गवई और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्ह की पीठ ने 30 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि मुकदमा चलाने की अनुमति देने में विलंब को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन यह सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामलों को रद्द करने का आधार नहीं होगा। न्यायालय ने कहा कि अनुमति देने वाला प्राधिकार अवश्य ही यह ध्यान में रखे कि लोग कानून का शासन में विश्वास करते हैं। कानून का शासन न्याय प्रशासन में यहां दांव पर लगा हुआ है।
न्यायिक पड़ताल को अनुपयोगी बनाता है:
पीठ ने कहा, ‘अनुमति के अनुरोध पर विचार करने में विलंब कर अनुमति देने वाला प्राधिकार न्यायिक पड़ताल को अनुपयोगी बनाता है, इससे भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ आरोपों के निर्धारण की प्रक्रिया बाधित होती है।’ न्यायालय ने कहा, ‘भ्रष्ट व्यक्ति पर मुकदमा चलाने में देर करने से दंडित नहीं किये जाने की संस्कृति पनपती है। यह सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की मौजूदगी के प्रति एक प्रणालीगत आत्मसमर्पण है। इस तरह की अकर्मण्यता से भविष्य की पीढ़ी भ्रष्टाचार को जीवन जीने के तरीका का हिस्सा मानते हुए इसके प्रति अभ्यस्त हो जाएगी।’
तीन महीने की अवधि उपलब्ध है:
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 97 के तहत, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और अन्य जांच एजेंसियों को आपराधिक मामलों में लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए तीन महीने की अवधि उपलब्ध है, जिसमें एक महीना भी शामिल है। कानूनी सलाह के लिए. का विस्तार किया गया है. पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के फैसले के खिलाफ विजय राजामोहन नाम के एक सरकारी अधिकारी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।