Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने किराएदारों के हक में सुनाया फैसला, किराए की टेंशन हुई खत्म
Landlord and tenant - अगर आप किराए के मकान में रहते हैं या आपने अपना मकान किराए पर दिया है, तो यह खबर आपके बेहद काम की है। सुप्रीम कोर्ट Supreme Court's ने कहा है कि अगर किराएदार किसी मजबूरी के चलते किराया नहीं चुका पाता, तो इसे क्राइम नहीं माना जा सकता। इसके लिए IPC में कोई सजा मुकर्रर नहीं है। लिहाजा, उसके खिलाफ IPC के तहत केस भी दर्ज नहीं किया जा सकता।
NEWS HINDI TV, DELHI: अगर आप किराए के मकान में रहते हैं या आपने अपना मकान किराए पर दिया है, तो यह खबर आपके बेहद काम की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किराएदार किसी मजबूरी के चलते किराया नहीं चुका पाता, तो इसे क्राइम नहीं माना जा सकता। इसके लिए IPC में कोई सजा मुकर्रर नहीं है। लिहाजा, उसके खिलाफ IPC के तहत केस भी दर्ज नहीं किया जा सकता।
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मकान मालिक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनया बड़ा फैसला-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह टिप्पणी एक मकान मालिक की तरफ से किराएदार के खिलाफ किए गए केस की सुनवाई करते हुए की। इस मामले पर विस्तार से जानने से पहले आप अपनी राय यहां दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किराएदार को अपराधी मानकर उसके खिलाफ मामला नहीं चलाया जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने केस खारिज कर दिया। यह मामला नीतू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य की याचिका से जुड़ा है, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सुनवाई की।
किराया नहीं चुकाने पर मकान मालिक कर सकता है ये कार्रवाई -
बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि ये कोई क्राइम नहीं है, भले ही शिकायत में दिए फैक्ट्स सही हैं। किराया न चुका पाने पर कानूनी कार्यवाई हो सकती है लेकिन IPC के तहत केस दर्ज नहीं होगा। इस केस को धारा 415 (धोखाधड़ी) और धारा 403 (संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग) साबित करने वाली जरूरी बातें गायब हैं। कोर्ट ने मामले से जुड़ी FIR रद्द कर दी है।
इसके पहले यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास था, लेकिन कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ FIR रद्द करने से इनकार कर दिया था।
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कोर्ट ने किराया वसूल करने का रास्ता भी खोला
किराएदारों पर बहुत बड़ी राशि बकाया है, जिसके कारण शिकायतकर्ताओं ने कोर्ट के सामने अपनी समस्या भी रखी। दलील सुनने के बाद बेंच ने कहा कि किराएदार ने संपत्ति को खाली कर दिया है, तो इस मामले को सिविल रेमेडीज के तहत सुलझाया जा सकता है। इसके लिए कोर्ट इजाजत देता है।