कमर्शियल प्रॉपर्टी को खरीदने से पहले जान लें ये नफा नुकसान, किस हद तक पैसा लगाना रहेगा फायदेमंद
News Hindi TV (नई दिल्ली)। आप सब ने रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन अधिकतर लोगों को कमर्शियल प्रॉपर्टी के बारे में बहुत ही कम जानकारी हैं. कमर्शियल प्रॉपर्टी में ज्यातर दुकानें, शोरूम इत्यादी आते हैं. आज हम आपको कमर्शियल प्रॉपर्टी में निवेश करने से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने वाले हैं. इसे पढ़ने के बाद आप जानेंगे कि कमर्शियल प्रॉपर्टी में निवेश करने के क्या फायदे और क्या नुकसान हैं.
सैलरी लेने वाले भी ले सकते हैं कमर्शियल प्रॉपर्टी
एक धारणा के अनुसार जिनके पास बहुत अधिक पैसा होता है, वही Commercial property खरीद सकते हैं. कुछ हद तक यह बात सच भी है, लेकिन पूरी तरह नहीं. इन दिनों सैलरी पाने वाले लोगों को भी कमर्शियल प्रॉपर्टीज़ में निवेश करते देखा गया है. कमर्शियल प्रॉपर्टी निवेशक को लगातार रिटर्न देने की क्षमता रखती है. इसके अलावा इस पर किराया भी अधिक होता है और एक पैसिव इनकम बनाई जा सकती है, लेकिन इसके कुछ दिक्कतें भी आ सकती हैं. तो चलिए, पहले हम इसके फायदों की बात करते हैं
किराये से होती है अधिक आमदनी
सबसे बड़ा लाभ ये है कि रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी की तुलना में कमर्शियल प्रॉपर्टी में किराया अधिक मिलता है. आमतौर पर कहा जाता है कि रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में सालाना 1-2 फीसदी का रिटर्न मिलता है, जबकि कमर्शियल प्रॉपर्टी सालाना 8-11 फीसदी तक का रिटर्न देने में सक्षम होती है. हालांकि, कमर्शियल प्रॉपर्टी पर एरिया का भी असर होता है. तो यदि आप केवल रेंटल इनकम बनाना चाहते हैं तो कमर्शियल प्रॉपर्टी में निवेश करना उपयुक्त है.
फर्निशिंग की लागत अब न बराबर
कमर्शियल प्रॉपर्टी का एक अन्य लाभ ये भी है कि किराये पर देने से पहले इसे फर्निश कराने की जरूरत नहीं होती. ऐसे में प्रॉपर्टी मालिक का खर्च बच जाता है. कमर्शियल प्रॉपर्टी के मालिक के तौर पर आप अपने किरायेदार को बिना फर्निश किए ही रेंट आउट कर सकते हैं.
किरायदारों के साथ कम माथापच्ची
दुकानों या शोरूम को किराये पर लेने वाले लोग कंपनियों से जुड़े होते हैं. वे आम किरायेदार नहीं होते. उनका पैसे का हिसाब-किताब सामान्य किरायेदारों से बेहतर होता है. 6 महीने या सालभर का किराया एडवांस में रहता है. रेंट पर लेने वाली फर्म लंबे समय के लिए (5-10 साल) रेंट पर लेते हैं. यदि आपकी प्रॉपर्टी का एक हिस्सा कोई बड़ा बैंक रेंट पर लेता है तो प्रॉपर्टी के अन्य खाली हिस्से की वैल्यू और बढ़ जाती है.
बड़ी इन्वेस्टमेंट
इसे नुकसान तो नहीं कह सकते, लेकिन ये एक लिमिटेशन जरूर है. शुरुआत में बड़ा पैसा निवेश करने की जरूरत होती है, जबकि रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में शुरुआती निवेश काफी कम हो जाता है.
महंगा लोन
कमर्शियल प्रॉपर्टी लेने की दूसरी लिमिट ये है कि इस पर लोन लेने के लिए आपको ब्याज की दरें अधिक चुकानी पड़ती हैं. आमतौर पर कमर्शियल प्रॉपर्टी लोन महंगे ही होते हैं. लोन की दर कई बार प्रॉपर्टी के टाइप, निवेशक के प्रोफाइल, लोकेशन और री-पेमेंट पीरियड पर भी निर्भर करती हैं.
एसेट मैनेजमेंट (Asset Management) में मुश्किल
रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी के लिए जहां किरायेदार मिलने काफी आसान होते हैं, लेकिन कमर्शियल प्रॉपर्टी के लिए किरायेदार खोजना उतना ही मुश्किल है. चूंकि कमर्शियल प्रॉपर्टी को बड़े कॉरपोरेट हाउस और नॉन-इंडिविजुअल्स (non - individual) होते हैं, जो End - to - End asset management में सहूलियत चाहते हैं और इसके लिए आपको प्रोफेशनल लोगों की जरूरत रहती है.
रिसर्च की है जरूरत
किसी भी निवेशक को कमर्शियल प्रॉपर्टी लेने से पहले काफी रिसर्च करने की जरूरत होती है. निवेशक को प्रॉपर्टी से जुड़ी लागत, उसपर लगने वाले टैक्स, क्षेत्रीय कानून और रेंट-आउट (Rent Out) करने संबंधी कानून इत्यादी समझने पड़ते हैं. इसके साथ बाजार और लोकेशन के बारे में अच्छी जानकारी के लिए भी रिसर्च की आवश्यकता होती है. यदि कैलकुलेशन में थोड़ा भी गड़बड़ हो जाए तो निवेशक को बड़ी समस्या हो सकती है.