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High court ने कहा, इस स्थिति में माता पिता औलाद से वापस ले सकते हैं प्रोपर्टी

High court decision : माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के पक्ष में किए गए संपत्ति समझौते के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसले में, उच्च न्यायालय (High court ) ने कहा है कि यदि बच्चे वादे के अनुसार माता-पिता की देखभाल नही करते हैं, तो माता-पिता बच्चों को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे। और आपको बता दें कि हाई कोर्ट ने कहा हैं कि इस स्थिति में माता - पिता औलाद से संपत्ति वापस ले सकते हैं। आप भी जान लें हाई कोर्ट के इस फैसले के बारे में....
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High court ने कहा, इस स्थिति में माता पिता औलाद से वापस ले सकते हैं प्रोपर्टी

NEWS HINDI TV, DELHI : आपको बता दें कि यदि कोई बेटा अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल (Proper care of elderly parents) नहीं करता है या उन्हें परेशानी देता है, तो वे उसे उपहार में दी गई संपत्ति (Property) वापस ले सकते हैं। यह टिप्पणी बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने की है. जस्टिस रंजीत मोरे और अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच ने एक ट्रिब्यूनल के आदेश को सही ठहराते हुए इस संबंध में वरिष्ठ नागरिकों के लिए बने विशेष कानून का हवाला दिया.

जानकारी के लिए बता दें कि ट्रिब्यूनल ने बुजुर्ग माता-पिता (elderly parents) के अनुरोध पर बेटे और बहू को उपहार में दी गई संपत्ति का बैनामा रद्द (property deed canceled) कर दिया था। इसके खिलाफ बेटे और बहू ने हाईकोर्ट में अपील की थी।


और यह चर्चित मामला अंधेरी के एक वरिष्ठ नागरिक दंपत्ति का है। उन्होंने अपने बेटे को एक गिफ्ट डीड दी और फ्लैट का पचास प्रतिशत हिस्सा उसके नाम पर ट्रांसफर कर दिया।


सताते थे बेटे बहू:

साल 2014 में एक शख्स की पहली पत्नी का निधन हो गया। पिछले साल जब उन्होंने दूसरी शादी करनी चाही तो उनके बेटे और उसकी पत्नी ने उनसे अनुरोध किया कि वह अपने अंधेरी फ्लैट का कुछ शेयर उन लोगों के नाम ट्रांसफर कर दें। उसके पिता ने दूसरी शादी की और फ्लैट का पचास फीसदी हिस्सा उनके नाम कर दिया। लेकिन ऐसा होने के बाद बेटे और उसकी पत्नी ने उनको सताना शुरू कर दिया।


'ट्राइब्यूनल के फैसले में कोई गलती नहीं'

परेशान होकर बुजुर्ग मां-बाप ट्राइब्यूनल पहुंचे और गिफ्ट डीड कैंसल करने की मांग की। ट्राइब्यूनल ने उनके हक में फैसला दिया। ट्राइब्यूनल के फैसले के खिलाफ बेटा व उसकी पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील की। बेंच ने कहा कि पैरंट्स ने वह गिफ्ट अपने बेटे व उसकी पत्नी के अनुरोध पर इसलिए दी थी कि बुढ़ापे में वो लोग उनकी देखभाल करेंगे। लेकिन बेटे और बहू ने दूसरी पत्नी की वजह से ऐसा किया नहीं। इन हालात में हमें ट्राइब्यूनल के फैसले में कोई गलती नजर नहीं आती।
 

क्या कहता है स्पेशल ऐक्ट:

पैरंट्स और सीनियर सिटिजन कल्याण और देखभाल ऐक्ट 2007 में कहा गया है कि बच्चों की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपने बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करें। उनको अकेला छोड़ना या देखभाल न करना अपराध है।

बुजुर्ग माता-पिता जो 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और खुद की देखभाल नहीं कर सकते, वे अपने बच्चों से भरण-पोषण की मांग (demand for maintenance) कर सकते हैं। इनमें जैविक दादा-दादी भी शामिल हैं।
विशेष न्यायाधिकरण ऐसे बुजुर्गों को 10,000 रुपये का भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दे सकता है.

ऐसे बुजुर्ग माता-पिता (elderly parents) के मामले में जिनके कोई संतान नहीं है, वे उस व्यक्ति से भरण-पोषण भत्ते की मांग कर सकते हैं जो उनकी संपत्ति का प्रबंधन या प्रबंधन करेगा या जिसे उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति मिलेगी।
बुजुर्ग माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करना वयस्क बच्चों और पोते-पोतियों की जिम्मेदारी है। चाहे वह पुरुष हो या महिला.
अगर कोई कानून का पालन (obey the law) नहीं करता है तो उसे तीन महीने की सजा हो सकती है.