live in relationship law : लिव इन रिलेशनशीप में रहने वाले कपल को कब माना जाएगा पति पत्नी, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ़
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship law) में रहने वालो के लिए बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों का परीक्षण किया और बताया कि सिर्फ दस्तावेज़ की मदद से साबित हो सकता है की महिला और पुरुष दोनों लम्बे समय से पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। आईये इस के बारे में विस्तार से जानते हैं।
News Hindi TV, Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर लंबे समय तक आदमी और औरत साथ-साथ (सहजीवन) रह रहे हों तो इसे शादी की अवधारणा मानी जाएगी। यानी सालों साल अगर कपल पति-पत्नी की तरह रह रहा हो तो यह धारणा माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा हैं। ऐसे मामले में शादीशुदा जिंदगी को नकारने वाले पर दायित्व होगा कि वह साबित करे कि शादी नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि कपल अगर लंबे समय तक साथ रहते हैं तो उनके नाजायज संतान (illegitimate child) भी उनके फैमिली की संपत्ति में हिस्से का हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह मामला आया था कि क्या सहजीवन में रहने वाले कपल के मामले में पर्याप्त सबूत हैं कि साबित हो सके कि वह पति-पत्नी हैं? सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी सवाल था कि क्या लंबे समय से साथ रहने वाले कपल के इलिजिटिमेट यानी गैर कानूनी औलाद (illegitimate child) संपत्ति में हकदार होगा? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वैसे कपल की संतान जो बिना शादी के लंबे समय से सहजीवन में रह रहे हैं वैसे बच्चे (नाजायज) को भी फैमिली की संपत्ति में हक होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने रेकॉर्ड्स को देखा
सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को परीक्षण कर बताया कि दस्तावेज से साबित होता है कि महिला और पुरुष दोनों सहजीवन यानी साथ-साथ लंबे समय से पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले के जजमेंट का हवाला देकर कहा कि यह सेटल व्यवस्था है कि अगर आदमी और औरत लंबे समय से सालों साल पति-पत्नी की तरह रह रहा हो और सहजीवन में हो तो यह धारणा होगी कि वह शादीशुदा हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-114 (Section 114 of the Indian Evidence Act) में शादी को नकारने वाले की जिम्मेदारी होगी कि वह साबित करे कि शादी नहीं हुई थी। पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने इस मामले में व्यवस्था दी हुई है.
पहले कोर्ट ने क्या कहा था
इस मामले में 15 जून 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर कपल पति-पत्नी की तरह सालों से साथ रह रहे हैं तो ये धारणा माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा हैं और महिला पत्नी की तरह गुजारा भत्ता मांग सकती है। हाई कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि अगर दोनों पार्टी पति-पत्नी की तरह सालों से साथ रह रहे हैं तो महिला द्वारा सीआरपीसी की धारा-125 में गुजारा भत्ता के दावे में ये माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा कपल हैं।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा हुआ है कि ये तय सिद्धांत है कि अगर आदमी और औरत लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहें तो गुजारा भत्ता के दावे के मामले में दोनों धारणा के तहत पति-पत्नी माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में व्यवस्था दे रखी है कि पत्नी की परिभाषा के तहत माना जाएगा कि अगर कोई कपल लंबे समय तक शादीशुदा कपल की तरह यानी पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं तो सीआरपीसी की धारा-125 (Section 125 of CrPC) के तहत गुजारा भत्ता का दावा के समय शादी के सबूत पेश करने का शर्त नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि अगर कपल पति-पत्नी के तौर पर लंबे समय से साथ रहते हैं तो ये अनुमान व धारणा माना जाता है कि दोनों शादीशुदा कपल हैं।
मद्रास हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता से संबंधित एक मामले में सुनवाई के दौरान अहम फैसला दिया था। उस जजमेंट में अदालत ने वैसी महिला को प्रोटेक्ट किया था जो शादी का सबूत नहीं दे पाई थी। अदालत ने कहा था कि दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे थे और दो बच्चे थे। दोनों एक ही छत के नीचे रहे और शादीशुदा जिंदगी गुजारी दो बच्चे हुए ऐसे में कपल शादीशुदा कपल माने जाएंगे।