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Cheque Bounce : चेक हो गया है बाउंस तो जुर्माने के साथ-साथ हो सकती है इतनी सजा

cheque bounce rules : आज के समय में लगभग हर व्यक्ति ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल करता है। फोन पे, गूगल पे और पेटीएम आदि का ही ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। लेकिन बड़ी पेमेंट के लिए चेक का इस्तेमाल किया जाता है। इसे एक तरह का सुरक्षित तरीका भी माना जाता है। लेकिन अधिक्तर लोगों को इससे जुड़े नियमों की जानकारी नही है। आप भी चेक से पैसे निकालते हैं तो ऐसे में आपको पता होना चाहिए कि अगर चेक हो जाए तो क्या करना चाहिए।

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Cheque Bounce : चेक हो गया है बाउंस तो जुर्माने के साथ-साथ हो सकती है इतनी सजा

NEWS HINDI TV, DELHI : ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के जमाने में आज भी बड़ी पेमेंट के लिए चेक का ही इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में आपको बता दें कि चेक बाउंस (cheque bounce)  होने को अपराध माना जाता है। अगर चेक बाउंस होता है तो इसके लिए सजा का प्रावधान (provision of punishment) है। केवल सजा ही नहीं इसमें जुर्माना (Fine for check bopunce) भी देना पड़ता है। 


यदि कोई चेक बाउंस हो जाता है तो दोषी (cheque bounce rules) उस शख्स को माना जाता है जिसने चेक दिया है। यानी अगर आपको चेक किसी और ने दिया है और वह बाउंस हो गया है तो दोषी वह शख्स होगा जिसने आपको चेक दिया न कि आप। 

चेक के बाउंस (cheque bounce reason) होने पर आपकी ओर से उस शख्स को एक लीगल नोटिस भेजा जाएगा। इसका जवाब शख्स को 15 दिन के अंदर देना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि चेक बाउंस होने का केस (cheque bounce case solution) भी इस एक्ट की धारा 148 के तहत दर्ज किया जा सकता है। यह एक दंडनीय अपराध होता है। इसमें दोषी को 2 साल तक की जेल मिल सकती है।


सिर्फ यही नहीं चेक बाउंस होने पर 800 रुपये तक की पेनल्टी (check bounce penalty) लग सकती है। पेनल्टी से अलग चेक बाउंस होने पर जुर्माना (check bounce fine)भी लगाया जाता है। यह चेक पर लिखी रकम का दोगुना हो सकता है।


हालांकि, यह केवल बैंक द्वारा चेक को डिस्ऑनर (cheque bounce case) करने के केस में होता है। चेक बाउंस होने पर ग्राहक के भी कुछ अधिकार होते हैं।


अगर चेक के बाउंस होने में सजा 7 साल से कम की है इसलिए यह एक जमानती अपराध (cheque bounce bailable offense)  है। इसमें अंतिम फैसला आने तक जेल नहीं होती है। अगर इस मामले में किसी को सजा मिलती है तो वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता 389(3) के तहत आवेदन कर सकते हैं।